
ख़बर रफ़्तार, मुंबई: जब फिल्म अतीत की कहानियों को लाती है, तो सबसे बड़ी चुनौती होती है कि कैसे उस दौर को पर्दे पर लाया जाए । मैदान फिल्म जब बन रही थी, तो फिल्म की प्रोडक्शन डिजाइनर ख्याति कंचन पर भी यह जिम्मेदारी थी।
डिटेलिंग को लेकर रही खास जिम्मेदारी
मैदान को लेकर ख्याति कहती हैं, ‘इस फिल्म को बनाने में चार साल लग गए। रिसर्च का काम काफी किया गया, क्योंकि इंटरनेट मीडिया का जमाना है। अगर ग्लास और कप भी इस जमाने के फ्रेम में दिख गया, तो उसके लिए लोग ट्रोल कर देंगे। निर्देशक, कैमरामैन, कास्ट्यूम डिपार्टमेंट और मैं फिल्म की मुख्य टीम का हिस्सा थे, क्योंकि जो शाट लोग देखेंगे, उसकी पूरी जिम्मेदारी हमारी थी।’
अतीत को वर्तमान में लाना रहा कठिन
ख्याति बताती हैं, ‘पीरियड फिल्म होना ही इस फिल्म का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा रहा क्योंकि फिल्म को विश्वसनीय बनाना था। हमारे यहां आर्काइव की बहुत दिक्कत है। पिछली सदी के पांचवे और छठवें दश के आर्काइव हमारे पास कम है अखबार हमारी फिल्म का सब महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कहा जिस दौर की है, उस वक्त खब का मुख्य माध्यम अखबार और रेडियो हुआ करता था। रेडियो बनाना हमारे लिए दिक्कत न थी लेकिन अखबार के लिए ह खास तरह की स्याही का प्रयोग करना था, जिसका प्रयोग तब हुआ करता था। वह वाटर प्रू थी। फिल्म में जो ट्राम दिख रहा है, वह भी हम बनाया है। ट्राम तैयार कर के लिए केवल दो दिन दि गए थे। हमने एक टेम्पो ट्रैवलर को अंदर से ट्राम का लुक दिया।’
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फुटबाल से लेकर जूतों त सब बनाया
फिल्म में खिलाड़ी बने कलाकारों के लिए जूते और फुटबाल बनाना भी ख्याति के लिए कठिन काम रहा। वह कहती हैं, ‘पहले जूते चमड़े के हुआ करते थे। उसके सोल पर जो स्टड लगे होते थे, वह लकड़ी के होते थे। आज तो फाइबर या प्लास्टिक का मटेरियल होता है। कई फुटबाल प्रशंसक हैं, जिन्होंने हमें कई इनपुट्स दिए थे। फुटबाल भी चमड़े का हुआ करता था, बहुत ज्यादा बाउंस नहीं होता था। हमने फिर वैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए कभी फुटबाल के भीतर की हवा कम की, कभी ज्यादा की, कभी चमड़े की मोटाई को कम की, तब जाकर फुटबाल तैयार हुआ। इस फुटबाल को जानकारों ने परखा फिर पास किया।’
अजय को करना पड़ा ना
फिल्म की शूटिंग मुंबई के मड आइलैंड में ओलिंपिक के स्टेडियम जितना बड़ा सेट बनाकर की गई है। उसी स्टेडियम को हर बार बदलकर अलग-अलग देशों का स्टेडियम बनाया जाता था । ख्याति बताती हैं, ‘हमने वहां घास उगाई थी। हमें घास का पैच भी अपने साथ रखना पड़ता था । निरंतरता के लिए हमें उसी लंबाई की घास का पैच रखना होता था, जो शाट में प्रयोग हुआ है। जब खिलाड़ी अपने चमड़े के स्टड वाले जूते पहनकर खेलते थे, तब वह पूरी घास निकल जाती थी । फिर ब्रेक लेना पड़ता था, फिर से घास लगाई जाती थी। हम फिल्म में एशियन और ओलिंपिक खेल दिखा रहे थे। सब कुछ संभालकर रखना होता था । अजय के साथ मैं पहली बार काम किया है। वह पेशेवर हैं। कई बार वह फिल्म की टीम के साथ फुटबाल खेलने लग जाते थे। हम उनके पीछे भागते थे कि मत खेलो, क्योंकि शाट के लिए घास सेट किया होता था, डर था कि कहीं निकल ना जाए। खैर, मजेदार अनुभव रहा।’
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