ख़बर रफ़्तार, देहरादून: उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को लेकर अभी न तो स्थिति स्पष्ट हो सकी है और न ही चुनाव आचार संहिता लागू हुई। इसके बावजूद पांच में से एकमात्र हरिद्वार सीट ऐसी है, जहां बात यदि चुनाव को लेकर जनता के बीच जाने की हो अथवा स्थानीय मुद्दे उठाने की, पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत काफी पहले से मोर्चा संभाले हुए हैं।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने पांच, बसपा ने दो और एक विधानसभा सीट निर्दलीय ने जीती थी। इस प्रकार विपक्ष के पास आठ तो भाजपा के पास छह विधानसभा सीट हैं। इनमें से बसपा विधायक के निधन के कारण एक सीट फिलहाल रिक्त है। इनमें से एक हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत विधायक हैं। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट से विजयी रहे रावत के वर्तमान पार्टी विधायकों के साथ अच्छे संबंध हैं।
हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ने का है इरादा
हरीश रावत ने वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव हरिद्वार के बजाय नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट से लड़ा था। इस बार वह हरिद्वार सीट से ही चुनाव लड़ने का अपना इरादा काफी पहले जाहिर कर चुके हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा इस सीट पर अजेय है। पूर्व कैबिनेट मंत्रियों में डा हरक सिंह रावत व शूरवीर सिंह सजवाण ने इस सीट पर टिकट के लिए खुलकर दावेदारी की है।
पुत्र भी टिकट की दौड़ में
हरिद्वार के स्थानीय दिग्गजों के साथ हरीश रावत के पुत्र वीरेंद्र रावत भी इस सीट से टिकट पाने की दौड़ में बताए जा रहे हैं। पुत्र को चुनाव लड़ाने की इच्छा रावत भी सार्वजनिक रूप से व्यक्त भी कर चुके हैं। यह अलग बात है कि पार्टी के भीतर इन चुनौतियों के बीच हरीश रावत मंझे हुए नेता की भांति हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में गन्ना किसानों की समस्याओं, टिहरी विस्थापितों के पुनर्वास, आपदा प्रभावितों को मुआवजा समेत तमाम छोटे-बड़े मुद्दों को उठाने में व्यस्त हैं। अभी पार्टी में टिकट तो दूर की बात दावेदारों का ही आकलन हो रहा है।
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