
खबर रफ़्तार, नई दिल्ली: करवा चौथ, दिवाली और धनतेरस के त्योहारी सीजन में उपभोक्ता दुकानों में भारतीय उत्पादकों द्वारा बनाई गई वस्तुओं की मांग कर रहे हैं। इसमें विशेष तौर पर खाने-पीने और कपड़ों की मांग प्रमुख है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेशी वस्तुओं की खरीदारी की अपील रंग ला रही है। करवा चौथ, दिवाली और धनतेरस के त्योहारी सीजन में उपभोक्ता दुकानों में भारतीय उत्पादकों द्वारा बनाई गई वस्तुओं की मांग कर रहे हैं। इसमें विशेष तौर पर खाने-पीने और कपड़ों की मांग प्रमुख है। सजावटी चीजों की खरीद में भी भारतीय वस्तुओं की मांग बनी हुई है। सजावटी वस्तुओं, झालरों, दियों और इलेक्ट्रॉनिक्स की बनी सजावटी चीजों में चीनी माल की खपत कम हुई है, लेकिन इनकी मांग अभी भी बनी हुई है। गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के मामलों में भी भारतीय और चीनी उत्पादकों की वस्तुओं में बराबर की खपत बनी हुई है। स्वदेशी वस्तुओं की मांग में तेज बढ़ोतरी से उत्पादकों, व्यापारियों और कामगरों में उत्साह का माहौल है।
दिवाली में केवल एक सप्ताह का समय शेष बचा है। थोक बाजार में सजावटी दीयों, मोमबत्ती, झालरों और सजावटी फूलों की मांग में खूब तेजी देखी जा रही है। सदर बाजार के दुकानदारों के अनुसार, इन वस्तुओं की मांग में स्थानीय उत्पादों का खूब जोर देखा जा रहा है। खुदरा दुकानदारों की ओर से स्थानीय वस्तुओं की मांग की जा रही है। विशेषकर सजावटी मिट्टी के दीयों, झालरों, सजावटी फूलों के मामले में स्थानीय लोगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग हो रही है। इन वस्तुओं को बेहतर कीमत भी मिल रही है।
इलेक्ट्रॉनिक दीयों, झालरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के मामलों में भारतीय उत्पादकों की वस्तुएं कम हैं। भारतीय उत्पादक जो वस्तुएं बना रहे हैं, उसमें भी ज्यादातर चीन से मंगाए सामानों की असेंबलिंग ही ज्यादा हो रही है। संभवतः यही कारण है कि इस सेक्टर की चीजों में चीनी वस्तुओं की मांग बनी हुई है। चीन की लंबी झालर सबसे ज्यादा मांग में हैं। लेकिन ज्यादा समय या लंबे सीजन तक चलने वाली झालरों या लाइटों की मांग में भारतीय उत्पादकों द्वारा बनाई गई झालरों की मांग सबसे ज्यादा है।
भगवान गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियां बेच रहे मोहम्मद एहसान ने अमर उजाला को बताया कि इस बार कोलकाता की मिट्टी से बनी मूर्तियों की अधिक मांग है। चीन से आने वाली पीओपी की बनी मूर्तियां सस्ती हैं, लेकिन पूजा के दौरान पीओपी की मूर्तियों को लोग उचित नहीं मानते। यही कारण है कि कोलकाता से बनी मिट्टी की मूर्तियों की मांग अधिक है।

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