ख़बर रफ़्तार, देहरादून: प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में अब राज्य भर में मिलने वाले अज्ञात या लावारिस शवों का प्रैक्टिकल के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.ताकि, प्रैक्टिकल के लिए छात्रों को पर्याप्त संख्या में डेड बॉडी मिल सके.मेडिकल की पढ़ाई में प्रैक्टिकल की एक अहम भूमिका होती है.लिहाजा छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेजों में डेड बॉडी से प्रैक्टिकल कराया जाता है. मेडिकल कॉलेजों में एक डेड बॉडी पर कई बच्चे प्रैक्टिकल करते हैं.जिसको देखते हुए धामी मंत्रिमंडल ने बीते दिन लावारिस लाशों पर प्रैक्टिकल की अनुमति दे दी है.
दरअसल, कैबिनेट के निर्णय के अनुसार पहले उत्तर प्रदेश शरीर रचना परीक्षण अधिनियम, 1956 (The Uttar Pradesh Anatomy Act, 1956) में किए गए प्रावधानों के तहत उत्तराखंड गृह विभाग के 21 जुलाई 2016 को आदेश जारी किए थे. जिसके तहत राजकीय दून मेडिकल कॉलेज, देहरादून को प्रशिक्षण के लिए लावारिस शवों को देहरादून और हरिद्वार जिले से उपलब्ध कराने के लिए अधिकृत किया गया था.लेकिन अब इस व्यवस्था को पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए गृह विभाग के इस शासनादेश में विस्तार करते हुए इसे प्रदेश भर के लावारिस लाशों के इस्तेमाल संबंधित संशोधन किए जाने का निर्णय लिया गया है.
इसके बाद ही मेडिकल कॉलेज को शव उपलब्ध कराया जा सकेगा. हालांकि, मंत्रिमंडल ने गृह विभाग की ओर से साल 2016 में जारी शासनादेश में संशोधन किए जाने पर सहमति जता दी है. वहीं, मुख्यमंत्री सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि जिलों में मिले लावारिस शव को एसएसपी के माध्यम से उसी जिले में मौजूद राज्य सरकार के मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध कराया जा सकेगा. साथ ही अगर किसी जिले में मौजूद मेडिकल कॉलेज की ओर से किसी अन्य जिलों से लावारिस मानव शव की डिमांड की जाती है तो सबसे पहले पुलिस महानिदेशक की अनुमति पर प्राप्त कर कॉलेज को शव दे सकते हैं.
+ There are no comments
Add yours