कॉर्बेट नेशनल पार्क में आज से रेड अलर्ट जारी, वनकर्मियों की छुट्टियां रद्द, पढ़ें पूरी खबर

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ख़बर रफ़्तार, रामनगर: विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का ढिकाला जोन 15 नवंबर, जबकि बिजरानी जोन बीते दिन बंद हो गया है. उसके साथ ही कॉर्बेट प्रशासन ने कॉर्बेट पार्क में आज 1 जुलाई से रेड अलर्ट जारी कर दिया है. यह निर्णय मानसून सीजन को देखते हुए लिया गया है.

गौर हो कि मानसून सीजन में अधिक बारिश होने पर कॉर्बेट नेशनल पार्क के ढिकाला और बिजरानी के अलावा अन्य गेट पर्यटकों के लिए बंद हो जाते हैं. बरसात के दौरान कॉर्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों की आवाजाही नहीं होती है. इसी का फायदा शिकारी उठाते हैं. जिसके लिए कॉर्बेट प्रशासन चौकस हो गया है. जानकारी देते हुए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर डॉक्टर धीरज पांडे ने बताया कि मॉनसून सीजन को देखते हुए पार्क में रेड अलर्ट घोषित करने के साथ ही सभी वन कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई है. आगे कहा कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की यूपी से लगती संवेदनशील सीमाओं पर लगातार गश्त की जा रही है.

कहा कि यह गश्त हाथियों के माध्यम से, स्निफर डॉग के माध्यम से व पैदल गश्त के साथ ही ड्रोन के माध्यम से की जा रही है. कॉर्बेट प्रशासन की मानें तो वन्यजीवों को शिकारियों से बचाने के लिए जंगलों में गश्त बढ़ा दी गई है. करीब 300 फील्ड कर्मियों को जंगल में पेट्रोलिंग के लिए लगाए गए हैं. मानसून सीजन में चलने वाली पेट्रोलिंग को विभाग ने ऑपरेशन मानसून का नाम दिया है. कॉर्बेट नेशनल पार्क का क्षेत्रफल करीब 1288 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है. पार्क का जंगल भी काफी घना है. बरसात के मौसम में ढिकाला और बिजरानी के अलावा अन्य जोन में जिप्सी चालक और गाइडों की आवाजाही पूरी तरह से बंद हो जाती है. बरसात में जंगल के रास्ते खराब होने और गश्त में सुस्ती आने का फायदा शिकारी उठाते हैं.

सीटीआर (कॉर्बेट टाइगर रिजर्व) में उत्तर प्रदेश के अमानगढ़, अफजलगढ़, शेरकोट, धामपुर-नगीना, नजीबाबाद और मंडावली से शिकारियों की घुसपैठ का खतरा बना रहता है. इन इलाकों से ही शिकारी कॉर्बेट पार्क में घुसपैठ का प्रयास करते हैं. दक्षिणी सीमा पर प्रत्येक दो किलोमीटर में करीब 40 वन चौकी हैं. इन चौकियों में वन कर्मियों की चौकसी बढ़ा दी गई है. बारिश होने पर जंगल में सड़क टूट जाती है, इस वजह से वन चौकी में तैनात कर्मचारी जंगल से बाहर नहीं आ पाते. पार्क में कुछ इलाके ऐसे भी जहां वनकर्मी नहीं पहुंच पाते हैं, ऐसे इलाकों में शिकारियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन और थर्मल कैमरे की मदद ली जाती है.

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