
खबर रफ़्तार, देहरादूनः कोई भी अंतरिक्ष मिशन आसान नहीं होता और ऐसे जटिल मिशन त्याग भी मांगते हैं। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के पीछे इसरो के तमाम विज्ञानियों के निजी जीवन के त्याग को भूला नहीं जा सकता है।
विज्ञानियों ने किस तरह दिन-रात मेहनत कर मिशन को सफल बनाया, इसके अनुभव यूसैक के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट ने जागरण के साथ साझा किए।
प्रो. बिष्ट के मुताबिक उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक)
के निदेशक के रूप में उन्हें वर्ष 2022 में इसरो की प्रयोगशालाओं के भ्रमण के अवसर मिले।
इस दौरान उन्होंने लैब में काम कर रहीं कुछ महिला विज्ञानियों से भी बात की। वह बेहद संवेदनशील और उच्च एहतियात वाले माहौल में विशेष परिधान में काम कर रहीं थीं। उन्होंने बताया कि लैब में काम करते हुए कब रात हो जाती है, उन्हें एहसास ही नहीं हो पाता।
बच्चों को खबर नहीं होती है कि मां कब काम से लौटीं और कब दोबारा काम पर चली गईं। अथक मेहनत और निजी त्याग का यह दौर इसरो की लैब में अनवरत रूप से महीनों तक जारी रहता है।
बुधवार को चंद्रयान-3 के सफल होने पर प्रो. बिष्ट ने कहा कि विज्ञानियों का त्याग और देश के प्रति समर्पण ही मिशन को इस मुकाम पर ला पाया है।
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