तलाकशुदा महिला को अपने पूर्व पति को बदनाम करना पड़ा महंगा, अदालत ने पत्नी पर ठोका 15 लाख का जुर्माना

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ख़बर रफ़्तार, नई दिल्ली: एक तलाकशुदा महिला को अपने पूर्व पति को बदनाम करना काफी महंगा पड़ गया। दिल्ली की एक अदालत ने न सिर्फ महिला को अपने पूर्व पति की मानहानि के लिए जिम्मेदार ठहराया है बल्कि पति को हर्जाने के रूप में 15 लाख रुपये देने का आदेश दिया है।

साकेत जिला कोर्ट के जज सुनील बेनीवाल ने इस मामले की सुनवाई में यह पाया कि पीड़ित व्यक्ति की पूर्व पत्नी के कृत्यों ने उस व्यक्ति को चोट पहुंचाई और उसके पेशेवर विकास में भी बाधा उत्पन्न की।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने 29 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि इस मामले के रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी (महिला) ने मानहानि करने वाले कृत्यों में लिप्त है। वादी (पूर्व पति) द्वारा पेश की गई ईमेल/चैट की कॉपी से यह विधिवत साबित हो चुका है, वहीं, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य हलफनामा भी इसकी पुष्टि करता है और इसका खंडन नहीं किया गया है। महिला ने उक्त ईमेल की प्रामाणिकता को चुनौती नहीं दी है और ना ही चुनौती देने के लिए कोई कदम उठाया है।

अदालत शिकायतकर्ता द्वारा अपनी पूर्व पत्नी के खिलाफ दायर मुकदमे पर विचार कर रही थी, जिसमें उसे बदनाम करने और उसके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण और झूठे मुकदमे चलाने के लिए हर्जाने की मांग की गई थी। इन दोनों की शादी 2001 में हुई थी। पति ने आरोप लगाया कि पत्नी 2009 में अपनी नाबालिग बेटी के साथ ससुराल का घर छोड़कर चली गई और विभिन्न अदालतों और अधिकारियों के समक्ष उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाकर झूठे मुकदमे दायर करना शुरू कर दिया।

उसने यह भी दावा किया कि पत्नी ने उसे अपनी बेटी से भी मिलने नहीं दिया और बेटी को अपने पिता के प्यार और स्नेह से वंचित कर दिया। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि पत्नी ने अपने ईमेल अकाउंट के माध्यम से अपने दोस्तों के साथ चैट करते समय उसके और उसकी मां के खिलाफ घटिया और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया।

पति ने कहा कि 2021 में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत क्रूरता के आधार पर एक फैमिली कोर्ट द्वारा उनकी शादी को रद्द कर दिया गया था। हालांकि, तलाक के बाद भी पति ने यह आरोप लगाया कि उसकी पूर्व पत्नी उसके वृद्ध और बीमार मामा को ईमेल भेजकर उसे बदनाम करती थी, जो उसके मालिक भी थे।

महिला के पूर्व पति ने आगे तर्क दिया कि लगातार उत्पीड़न के कारण उसे मार्च 2022 में एक बड़ी सर्जरी करानी पड़ी, जिसमें 6 लाख का खर्च आया था। दूसरी ओर पत्नी ने यह तर्क दिया कि पति द्वारा दायर किया गया मुकदमा झूठा, दुर्भावनापूर्ण और प्रतिवादी को परेशान करने के लिए दायर किया गया था।

उसने यह भी दावा किया कि मुकदमा समय-सीमा के भीतर प्रतिबंधित था क्योंकि यह वर्ष 2010 की चैट और 2020 में भेजे गए ईमेल पर आधारित था। अदालत ने देखा कि पत्नी ने अपनी सुविधा के अनुसार विरोधाभासी रुख अपनाया है।

अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया, “यह देखा गया है कि बहस के प्रश्न संख्या 5 में प्रतिवादी (महिला) ने कहा है कि उसने आज तक केवल एक ईमेल आईडी का उपयोग किया है, जबकि अगले ही प्रश्न में उसने स्वीकार किया है कि उसने वर्तमान पक्षों के बीच दायर डीवी मामले में नवंबर 2017 के महीने में अपने आय हलफनामे में एक अन्य ईमेल आईडी का उल्लेख किया था, जिसका ऊपर जिक्र किया गया है।”

अदालत ने यह भी पाया कि मुकदमा समय-सीमा के भीतर है। इस प्रकार, अदालत ने महिला को जिम्मेदार ठहराया और उसे मुकदमा दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 9 प्रतिशत ब्याज के साथ ₹15 लाख का हर्जाना देने का आदेश दिया।

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