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Saturday, October 5, 2024
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राज्य के दुर्गम इलाकों में अकेले रह रहे बुजुर्गों के लिए जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, जानें क्या हुआ

ख़बर रफ़्तार, नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश के खासकर दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में पलायनग्रस्त गांवों में अकेले रह गए वृद्धों को मूलभूत सुविधा देने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से 6 सप्ताह के भीतर शपथ पत्र पेश करने को कहा है.

नैनीताल हाईकोर्ट ने शपथ पत्र में यह भी बताने को कहा है कि ऐसे कितने वरिष्ठ नागरिक हैं, जिनके द्वारा इसके लिए आवेदन किया गया है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि उनके पास मदद के लिए आवेदन नहीं आये. हालांकि सरकार इस पर कार्य कर रही है. अब मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी.

मामले के अनुसार बागेश्वर निवासी समाजसेवी और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहीं अधिवक्ता दीपा आर्या ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की. याचिका में कहा गया कि प्रदेश के दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में जिन परिवारों के लोग नौकरी और अन्य कारणों से पलायन कर चुके हैं, उन परिवारों के वृद्ध अकेले ही मुश्किलों से भरा जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसे में, देखरेख से विरत इन लोगों के जीवन शरदकाल व बरसातों के साथ अन्य समय भी नरक से बदतर हो जाते हैं. इन क्षेत्रों में एनजीओ भी नहीं पहुंच पाते हैं. इस कारण इन बुजुर्गों को समाज की तरफ से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल पाती है.

याचिकाकर्ता ने इन वरिष्ठ नागरिकों को केंद्रीय सोशल वेलफेयर एक्ट 2007 के तहत सहायता दिलाने की प्रार्थना की है. याची ने प्रार्थना में ये भी कहा है कि सरकार की आंगनबाड़ी और आशा बहनों के माध्यम से ऐसे लोगों का डाटा तैयार किया जाए और सरकार इन्हें नियमों के तहत तत्काल मदद पहुंचाए. वर्तमान में इन वरिष्ठ नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. इसलिए सरकार उनको समय समय पर जागरूक भी करे. जनहित याचिका में आयुक्त कुमाऊं और गढ़वाल सहित जिला अधिकारियों को भी पक्षकार बनाया गया है.
क्या है सोशल वेलफेयर एक्ट 2007

भारत सरकार ने वर्ष 1999 में राष्ट्रीय वृद्धजन नीति (National Policy on Older Persons) की घोषणा की थी. इसके माध्यम से वृद्ध जनों के अधिकारों को पहचान मिली. उनकी आर्थिक स्थिति, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, जीवन तथा संपत्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार को दी गई. इसके बावजूद विभिन्न समाजसेवी संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की तरफ से सरकार पर लगातार इस बात के लिये दबाव बनाया जा रहा था, कि वृद्धजनों हेतु बनी नीति के क्रियान्वयन के लिये विधायी प्रावधान किये जाएं. इसके बाद केंद्र सरकार ने वर्ष 2007 में ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007’ (Maintenance and welfare of parents and senior citizens act, 2007) पारित किया था.

अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकारें भरण-पोषण अधिकरण (Maintenance Tribunal) बनाएंगी, ताकि वरिष्ठ नागरिकों और माता-पिता को देय भरण-पोषण राशि पर निर्णय किया जा सके. यह अधिकरण बच्चों और संबंधियों को निर्देश दे सकता है कि वे माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण हेतु 10,000 रुपए का मासिक शुल्क अदा करें.

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