Maidaan डायरेक्टर के लिए सिर दर्द बन गई थी ‘घास’, अजय देवगन की फिल्म के लिए लेने पड़े 6 हजार ऑडिशन

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ख़बर रफ़्तार, मुंबई: कोरोना से कई फिल्मों के निर्माण में दिक्कतें आई। इनमें फिल्मकार अमित शर्मा (Amit Sharma) निर्देशित फिल्म मैदान (Maidaan) भी है। यह फिल्म 10 अप्रैल को ईद पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी। अजय देवगन (Ajay Devgn) अभिनीत यह फिल्म भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व मैनेजर और कोच सैयद अब्दुल रहीम की जिंदगानी पर आधारित है। फिल्म बधाई हो के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके अमित ने फिल्म और उससे जुड़ी चुनौतियों पर बात की…

फिल्म के दौरान किन चुनौतियों से सामना हुआ?

पहले हमारी योजना फिनलैंड, आस्ट्रेलिया और जकार्ता के उन वास्तविक मैदानों पर शूट करने की थी, जहां हमारी टीम ने मैच खेला था, लेकिन हमें अनुमति नहीं मिली। फिर मैंने तय किया कि अपना एक मैदान का सेट बनाया जाए। इसके लिए हमने मुंबई में 19 एकड़ जमीन किराए पर ली। करीब 11 महीनों की अवधि में मैदान का सेट तैयार किया गया।

21 मार्च 2020 को हम उस मैदान पर शूटिंग शुरू करने वाले थे, तब कोविड आ गया और 24 मार्च को लॉकडाउन लग गया। उसके बाद दो सालों तक कोरोना महामारी में लॉकडाउन खुलता और बंद होता रहा। हमने थोड़ी शूटिंग की थी कि फिर साल 2021 में चक्रवात आ गया। उससे सेट को बहुत नुकसान हुआ। l

सुनने में आया कि सेट के अलावा मैदान की घास को लेकर भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा?

बारिश के मौसम में मैदान पर जो मिट्टी और घास तैयार की गई थी, वह जगह-जगह पर धंसने लगी। हमारी फिल्म में सितारों से ज्यादा नखरे तो मैदान की घास के थे। हम उस घास पर एक साथ तीन दिन से ज्यादा शूट नहीं कर सकते थे। तीन दिन की शूटिंग के बाद घास को पांच दिनों तक आराम देना पड़ता था, नहीं तो सब सूख जाती। हमने इसी तरह उस मैदान पर करीब 35-40 दिनों तक शूटिंग की।

खिलाड़ियों की भूमिका में किसी जाने पहचाने स्टार को कास्ट न करने की क्या वजह रही?

अब तक जिन्होंने भी फिल्म देखी है, सभी का यही कहना है कि अजय, हूबहू सैयद अब्दुल रहीम की तरह लगे हैं। मैं इस फिल्म के माध्यम से लोगों को सैयद अब्दुल रहीम की दुनिया में ले जाना चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि उसमें किसी सितारे की छवि या स्टारडम दिखे।

कास्टिंग को लेकर मेरी प्राथमिकताएं ऐसी थी कि अच्छा एक्टर, बहुत अच्छा फुटबालर और वास्तविक खिलाड़ियों जैसी हूबहू शक्ल। इस फिल्म में दिखाए गए 16 खिलाड़ियों की कास्टिंग एक से डेढ़ साल चली। करीब छह हजार कलाकारों के ऑडिशन वीडियो देखे गए थे।

इससे पहले खेलों से आपका कोई जुड़ाव नहीं दिखता, फिर यह फिल्म बनाने का विचार कैसे आया?

मेरे पास इस फिल्म का प्रस्ताव निर्माता बोनी कपूर लेकर आए थे। तब इसकी स्क्रिप्ट का सिर्फ एक ही वर्जन तैयार था। उसके बाद मैं सैयद अब्दुल रहीम के साथ खेले कुछ खिलाड़ियों और उनके बेटे सैयद शाहिद हकीम साहब से मिला। लंबी बातचीत में रहीम साहब के बारे में सारी जानकारी निकाली गई और फिर से अंतिम स्क्रिप्ट लिखी गई।

बधाई हो की तरह क्या इससे भी टिकट खिड़की पर जमकर कमाई और राष्ट्रीय अवार्ड जैसी उम्मीदें कर रहे हैं?

अवार्ड मुझे पसंद है और हर फिल्मकार चाहता है कि उसकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चले। इससे कम से कम लोगों को पता तो चलेगा कि सैयद अब्दुल रहीम कौन थे। मैं तो चाहूंगा इस फिल्म के लिए भी मुझे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल जाए।

आगामी प्रोजेक्ट्स क्या हैं?

अभी तो सभी को मना कर दिया था कि जब तक मैदान रिलीज नहीं होगी, तब तक कोई और फिल्म नहीं करूंगा। आगे के लिए दो कहानियां मुझे पसंद आई हैं। दोनों ही कहानियां ऐसी हैं, जिन्हें लोग देखना चाहेंगे। उनमें से जैसे ही मैं कोई एक लॉक करूंगा उसकी घोषणा तुरंत कर दूंगा।

फिल्म की तैयारी के दौरान सैयद अब्दुल रहीम के बारे में कितनी अनकही कहानियां मिलीं?

अब्दुल रहीम भारतीय फुटबाल टीम के कोच, मैनेजर और फिजियो तीनों थे। फिल्म में उनकी सारी अनकही कहानियां नहीं दिखा सका। उनमें से एक यह है कि राष्ट्रीय टूर्नामेंट के फाइनल से ठीक पहले उनकी विरोधी टीम में खेल रहे तुलसीदास बलराम चोटिल हो गए थे। उनके कोच रहीम के पास सुझाव के लिए आए। अगले दिन बलराम सबसे ज्यादा गोल दागने वाले खिलाड़ी रहे और सैयद अब्दुल रहीम की टीम हार गई।

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