अनूठी मान्यता: यहां मंदिर में बिताते हैं एक रात तो बन जाती है बात…पूजा का नहीं विशेष विधान, न ही जरूरी नियम

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खबर रफ़्तार, विकासनगर (देहरादून): अधिकांश देवस्थलों में देव पूजन के विधान होते हैं, पर उत्तराखंड में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां मनोकामना सिद्धि के लिए पूजन, भेंट, खानपान निषेध आदि का कोई तय नियम नहीं है। मान्यता है कि मंदिर परिसर में एक रात बिताने से भक्त की बात बन जाती है। यहां दूर-दूर से भक्त रात बिताने के लिए आते हैं।

यह चकराता ब्लॉक के हनोल स्थित महाशिव के चतुर्भुज रूप महासू देवता का मंदिर है। महासू देवता मंदिर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में पूजे जाने वाले बासिक, पबासिंक, बौठा और चालदा महासू भगवान शिव के ही रूप हैं। महाशिव के अपभ्रंश से महासू की उत्पति हुई, भक्तों के लिए वह न्याय के देवता हैं।

महासू देवता मंदिर हनोल के साथ एक अनूठी मान्यता जुड़ी
11वीं से 12वीं सदी के बीच हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण या हूण भाट (योद्धा) ने मंदिर का निर्माण किया था। हालांकि, मान्यता है कि यहां सतयुग से ही महासू महाराज की अराधना की जा रही है। महासू देवता मंदिर हनोल के साथ एक अनूठी मान्यता जुड़ी है।

यहां भक्त मनोकामना सिद्धि के लिए मंदिर परिसर में बने मैदान में रात्रि जागरण के लिए आते हैं। यहां भक्तों को अपने मन की इच्छा को महासू महाराज के समक्ष प्रकट करते हुए मंदिर परिसर में केवल एक रात बितानी पड़ती है। भक्तों को रात बिताने के लिए मंदिर समिति की ओर से बाकायदा कंबल भी दिया जाता है।

 

मान्यता है, सच्ची श्रद्धा से की गई मनोकामना को महासू महाराज पूरी करते हैं। मंदिर में रात लगाने के लिए कोई खास विधान या खानपान वर्जित नहीं है। हालांकि, कुछ भक्त सुबह स्नान के बाद आटे, घी और चीनी से प्रसाद बनाते है।  उसके बाद मंदिर के दर्शन कर भगवान के गर्भगृह स्थित स्राेत से निकले पवित्र जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश या जल पात्र छूने की अनुमति नहीं है। कई भक्त मनोकामना पूरी होने के बाद मंदिर में चांदी का सिक्का या छत्र चढ़ाते हैं। हालांकि, इन दोनों के लिए भी कोई तय नियम नहीं है।

महासू देवता मंदिर समिति हनोल के सचिव मोहनलाल सेमवाल ने बताया, मंदिर परिसर में रात बिताने का मतलब जागरण से है। महासू महाराज शिव का ही रूप हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने नहाने से पहले शरीर पर लगाए गए हल्दी के उबटन से गणेश भगवान की उत्पति की थी। इसके बाद वह स्नान के लिए चली गईं और बाहर गणेश को द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया। जब शिव आए तो भगवान गणेश ने उनको द्वार पर रोेक दिया।

दोनों के बीच युद्ध हुआ, शिव ने त्रिशूल से भगवान गणेश का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। जब शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने गरुड़ को अपने बच्चे की तरफ पीठ कर सो रही माता के बच्चे के सिर को लाने के आदेश दिए। गरुड़ गज शिशु का शीश ले आए। शिव ने भगवान गणेश को गज शीश लगाकर पुनर्जीवित कर दिया। रातभर भगवान शिव, माता पार्वती, शिव गणों और सभी देवी देवताओं ने जागरण किया, तब से ही महासू मंदिर में जागरण या रात बिताने की प्रथा शुरू हुई।

हनोल स्थित महासू मंदिर में हरितालिका तीज के साथ जागड़ा पर्व शुरू होता है। सेमवाल ने बताया, हरितालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इसके अगले दिन गणेश चतुर्थी तक पर्व चलता है। इस बार हरितालिका तीज 18 और गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। यहां जागड़ा पर्व पर 20 हजार श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। करीब पांच से छह हजार भक्त रात भी लगाते हैं।

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