ख़बर रफ़्तार, उत्तरकाशी: उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं के बसे होने की मान्यता है। हिमालय की गोद में बसा एक छोटा- सा पहाड़ी राज्य स्वर्ग की अनुभूति कराता है।
वाराणसी के अलावा उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में भी काशी विश्वनाथ मंदिर है। उत्तकाशी को काशी और शिवनगरी कहा जाता है। इसे एक पवित्र नगरी की संज्ञा भी दी गई है। वहीं भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी (बाड़ाहाट) में विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर है। इस कारण इस स्थल का नाम उत्तर की काशी पड़ा है। इसके अलावा इस शहर में कई दार्शनिक मंदिर, आश्रम और गांव हैं, जो उत्तरकाशी की खूबसूरती में चार चांद लगा जाते हैं।
सीएम धामी ने शेयर की काशी विश्वनाथ मंदिर की वीडियो
उत्तरकाशी में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का मनमोहक दृश्य। देवाधिदेव महादेव का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे, ऐसी कामना करता हूँ। pic.twitter.com/ornrDUDSLm
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) January 27, 2024
उत्तराखंड में टूरिज्म को बढ़ावा देने के मकसद से प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अक्सर ही X (पूर्व में ट्विटर) पर यहां के सुंदर व दर्शनीय स्थलों की मनोरम वीडियो पोस्ट करते रहते हैं और लोगों को यहां आकर दर्शन करने या विजिट करने की अपील करते हैं।
इसी क्रम में सीएम धामी ने आज X पर उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर का वीडियो शेयर किया है। पोस्ट में कैप्शन में लिखा गया है, “उत्तरकाशी में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का मनमोहक दृश्य। देवाधिदेव महादेव का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे, ऐसी कामना करता हूं।”
स्कन्द पुराण के केदारखंड में भगवान आशुतोष ने उत्तरकाशी को कलियुग की काशी के नाम से संबोधित किया है। इसमें व्यक्त किया गया है कि वे अपने परिवार, समस्त तीर्थ स्थानों और काशी सहित कलियुग में उस स्थान पर वास करेंगे। जहां पर एक अलौकिक स्वयंभू लिंग, जो कि द्वादश जयोतिर्लिगों में से एक है, स्थित है। अर्थात, उत्तरकाशी में वास करेंगे।
उत्तरकाशी में भगवान विश्वनाथ अनादि काल से चिर समाधि में लीन होकर मंदिर में विराजमान हैं। भगवान आशुतोष यहां सदियों से संसार के समस्त प्राणियों का अपने शुभाशीष से कल्याण करते आ रहे हैं।
परशुराम ने की थी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना
मान्यता है कि यहां विश्वनाथ मंदिर की स्थापना परशुराम द्वारा की गई थी। इस जगह पर पाषाण शिवलिंग 56 सेंटिमीटर ऊंचा एवम् दक्षिण कि ओर झुका हुआ है। गर्भगृह में भगवान गजानन और माता पार्वती शिवलिंग के सम्मुख विराजमान है। वाह्य गृह में नंदी प्रतीक्षारत हैं।
वर्तमान मंदिर का पूर्णोद्धार सन 1857 में टिहरी गढ़वाल कि रानी खनेटी देवी पत्नी तत्कालीन राजा सुदर्शन शाह ने करवाया था। मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में पाषाण के आधार पर किया गया है। मंदिर के निर्माण में पत्थर का प्रयोग किया गया है।
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