खबर रफ़्तार, हरिद्वार: संत-महंतों का कहना है कि महादेव एक बूंद या एक लोटा जल से भी प्रसन्न होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि क्षमता से अधिक भार उठाकर ही उनको प्रसन्न किया जा सकता है।
कांवड़ यात्रा में कुछ वर्षों से प्रतिस्पर्धा में क्षमता से अधिक गंगाजल उठाने के प्रचलन से न केवल संत महंत बल्कि आमजन और चिकित्सक भी चिंतित हैं। हाल यह है कि कुछ युवा एक-दूसरे की होड़ में और शारीरिक बल दिखाने के चक्कर में 100 से 200 लीटर तक गंगाजल कंधों पर उठाकर ले जा रहे हैं। संत-महंतों का कहना है कि महादेव एक बूंद या एक लोटा जल से भी प्रसन्न होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि क्षमता से अधिक भार उठाकर ही उनको प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं, चिकित्सकों का कहना है कि ऐसा करने से शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। पेश है अमर उजाला की प्रमुख लोगों से वार्ता के विशेष अंश…
वैसे तो कहा जाता है कि सनातन धर्म में अंधभक्त हंै, लेकिन सच्चाई है कि जहां पर आस्था है वहां अंधभक्त होते ही हैं। आस्था के उल्लास में इतना भी उत्साह नहीं होना चाहिए कि खुद को भी परेशानी हो और दूसरों को भी। बालक, महिलाएं, वृद्ध तक भारी वजन उठाकर चल रहे हैं। महादेव भारी वजन उठाने से नहीं बल्कि मां गंगा को लेकर जाने वाले के भाव से प्रसन्न होंगे। चूंकि गंगा मां हैं तो वह कभी नहीं चाहेंगी कि उनका पुत्र कष्ट उठाए। इसका भी ध्यान रखना होगा।
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