ख़बर रफ़्तार, देहरादून: पांच साल से चली आ रही सिडकुल घोटाले की जांच आखिरकार पूरी हो गई है। एसआईटी ने इस पर एक हजार पन्नों की रिपोर्ट शासन को भेज दी है। बताया जा रहा है कि जांच में निर्माण संबंधी अनियमितताओं के साक्ष्य नहीं मिले हैं। जबकि, भर्तियों में भरपूर गड़बड़ियां पाई गई हैं। फिर भी इनमें सिडकुल के स्तर पर कोई गड़बड़ी नहीं हुई।
एसआईटी की इस रिपोर्ट पर आरोपी पाए गए लोगों के खिलाफ अब शासन को निर्णय लेना है। इस मामले में मुकदमा दर्ज होने की संभावना भी जताई जा रही है। 2012 से 2017 के बीच सिडकुल में विभिन्न निर्माण और भर्तियों में अनियमितताओं की बात सामने आई थी। यहां पर निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की ओर से कराए गए थे।
इस मामले की जांच 2018 में एसआईटी को सौंपी गई थी। एसआईटी का अध्यक्ष आईजी/डीआईजी गढ़वाल रेंज को बनाया गया। इसके तहत विभिन्न जिलों में टीम बनाई गईं। शुरुआत में जांच बेहद धीमी गति से चली। लेकिन, 2020 में तत्कालीन आईजी गढ़वाल बने अभिनव कुमार ने जांच में तेजी दिखाई और कुछ टेक्निकल एक्सपर्ट की मदद ली। इसमें समय-समय पर समीक्षाएं भी की गईं।
भर्तियां नियमों को ताक पर रखकर की गईं
डीजीएम एचआर का अनुभव प्रमाणपत्र फर्जी
सिडकुल में उस वक्त डीजीएम एचआर के रूप में कुमारी राखी का चयन किया गया था। इसके लिए राखी ने इंजीनियरिंग कॉलेज ऑफ रुड़की का अनुभव प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था। लेकिन, जब इस प्रमाणपत्र के बारे में कॉलेज से पूछा गया तो कॉलेज प्रशासन ने बताया कि वहां से यह अनुभव प्रमाणपत्र जारी ही नहीं हुआ।
चालकों के शैक्षिक प्रमाणपत्र संदिग्ध
चालक के रूप में अमित खतरी और विकास कुमार को भर्ती किया गया था। इन दोनों ने 10वीं पास के प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए। लेकिन, दोनों के प्रमाणपत्र संदिग्ध हैं। इस आधार पर सिडकुल प्रबंधन नहीं बल्कि इन कार्मिकों की प्रथमदृष्टया गलती एसआईटी ने मानी है। ऐसे में इन कार्मिकों के खिलाफ ही कार्रवाई करने की संस्तुति एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में की है।