हल्द्वानी दौरे पर PM को भेंट किए गए ऐपण कलाकृति की हो रही नीलामी, आप भी ले सकते हैं भाग

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खबर रफ़्तार ,हल्द्वानी: हल्द्वानी दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट किए गए कुमाऊं की पारंपरिक व अद्भुत ऐपण कलाकृति की ऑनलाइन नीलामी हो रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय पीएम मोदी को मिली 1219 उपहारों की नीलामी कर रहा है। इनमें ऐपण कलाकृति भी है।

12 अक्टूबर को खत्म हो जाएगी नीलामी

यह ऑनलाइन नीलामी प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर को शुरू हुई थी और 12 अक्टूबर तक चलेगी। वेबसाइट https://pmmementos.gov.in पर पंजीकरण कराकर इस ऑनलाइन नीलामी में शामिल हुआ जा सकता है, जहां कुमाऊं की ऐपण कलाकृति के अलावा मृर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा और राष्ट्रमंडल खेलों के विजेताओं की ओर से पीएम को दिए गए उपहार भी शामिल हैं। फिलहाल 1219 उपहारों को इस नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

10,800 रुपये है बेस प्राइस

नीलामी के लिए इस कलाकृति की बेस प्राइस 10,800 रुपये रखी गई थी। इसकी कीमत अभी 10,900 रुपये तक पहुंची है। नीलामी के लिए बोली 12 अक्टूबर को शाम 5 बजे तक लगाई जा सकेगी।

ये है ऐपण कलाकृति की खासियत

प्रधानमंत्री मोदी को जो एेपण कलाकृति भेंट की गई, वह लाल रंग की पृष्ठभूमि पर सूती कपड़े पर बना हुआ है। इस पर सफेद व नारंगी रंग से ऐपण कलाकृति यानी रंगों की लाइनें उकेरी गई है। चार फीट ऊंचे व डेढ़ फीट चौड़े कपड़े के ऊपरी हिस्से पर भगवान गणेश की आकृति बनी हुई है। कपड़े के निचले हिस्से में 2022 का हस्तनिर्मित कैलेंडर तैयार किया गया है। इसे प्रियंका शर्मा व उनकी टीम ने तैयार किया था।

30 दिसंबर को आए थे पीएम मोदी

पीएम मोदी 30 दिसंबर 2021 को हल्द्वानी आए थे। यहां उन्होंने एक चुनावी जनसभा को संबाेधित किया था। इस दौरान उन्हें उपहार दिया गया था। प्रदेश सरकार की एक जिला दो उत्पाद मुहिम के तहत नैनीताल जिले से ऐपण कलाकृति पीएम मोदी को भेंट की गई थी। इसे पीएम ने काफी सराहा था।

क्या है ऐपण

ऐपण कला को कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। यह लाल आैर सफेद रंगों की लाइनें होती हैं। दीवाली, देवी पूजन, लक्ष्मी पूजन, यज्ञ, हवन, जनेऊ, छठ कर्म, विवाह आदि मांगलिक अवसर पर घर की चौखट, दीवार, आंगन, मंदिर आदि को ऐपण से सजाया जाता है। पहले समय में गेरू (लाल मिट्टी) से जगह लीपकर उस पर चावल के आटे में पानी मिला सफेद लकीरें डाली जाती थी। अब बाजार के रंगों का प्रयोग होता है।

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