खबर रफ़्तार, बरेली: कानपुर में ‘आई लव मुहम्मद’ पोस्टर हटाने और एफआईआर दर्ज होने के बाद से विवाद छिड़ा हुआ है। इसके विरोध में मुस्लिम समाज के लोग ‘आई लव मोहम्मद’ लिखकर बैनर पोस्टर लगा रहे हैं। इस पर बरेली के मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मोहब्बत का इज़हार सड़कों पर हुड़दंग मचाकर, जुलूस निकालकर, धरना-प्रदर्शन से नहीं किया जा सकता।
‘आई लव मोहम्मद’ लिखने पर छिड़े विवाद पर ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बड़ा बयान दिया है। मौलाना ने कहा कि मोहब्बत का इज़हार सड़कों पर हुड़दंग मचाकर, जुलूस निकालकर, धरना-प्रदर्शन, पुलिस से टकराकर, गैर-मुसलमानों से भिड़कर या दुकानों में तोड़फोड़ कर नहीं किया जा सकता। यह पैगंबर-ए-इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ है। उन्होंने फरमाया है कि अच्छा मुसलमान वही है जिसके हाथ, पांव और जुबान से किसी को तकलीफ न पहुंचे।
मौलाना ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम ने अपनी हदीस में फरमाया है कि नमाज पढ़ना मेरी आंखों की ठंडक है। इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि पांच वक्त की नमाज़ अदा करें। इससे ही पैगंबर-ए-इस्लाम की रूह को खुशी होगी, ना कि बैनर और होर्डिंग्स लगाने से। उनकी शिक्षा मोहब्बत और रहमत की है। अल्लाह ने उन्हें रहमत-उल-आलमीन बनाकर भेजा, यानी वे सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों सहित पूरी इंसानियत के लिए रहमत हैं।
‘पैगंबर-ए-इस्लाम की शिक्षा पर अमल करना सबसे जरूरी’
शहाबुद्दीन रजवी का कहना है कि पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद से मोहब्बत करना हमारा ईमान और अकीदा है। लेकिन इसके साथ-साथ उनकी शिक्षा पर अमल करना सबसे ज्यादा ज़रूरी है। पैगंबर साहब ने पूरी दुनिया को अमन और शांति का पैगाम दिया। अपने विरोधियों से उन्होंने ना तो विवाद किया और ना ही कोई टकराव का रास्ता अपनाया बल्कि हमेशा समझौते की राह अपनाई। इतिहास गवाह है कि सबसे बड़ा समझौता ‘सुलहए हुदैबिया’ का है, जिसे पढ़ना और समझना चाहिए। ये वाक्या तरीखे इस्लाम का बहुत बड़ा हिस्सा है।
गलत कामों और आदतों से दूर रहने की नसीहत
मौलाना ने आगे कहा कि उनका सबसे बड़ा पैग़ाम मोहब्बत, अमन और शांति है। उन्होंने सिखाया कि झूठ मत बोलो, धोखा मत दो। नाजायज़ काम मत करो। नशा और शराब से दूर रहो। जुआ-सट्टा मत खेलो। यही उनकी शिक्षाएं हैं, जिन पर अमल कर इंसान अपनी ज़िंदगी और सीरत को बेहतर बना सकता है। अगर मोहब्बत का इज़हार करना है, तो सीरत-उल-नबी के जलसे में करें, मस्जिदों और मदरसों में उनकी सीरत पर रोशनी डालें, और अपनी व अपने परिवार की ज़िंदगी को उनके बताए रास्ते पर चलाकर गुज़ारें। किसी भी हाल में कानून को अपने हाथ में न लें, और टकराव का कोई भी रास्ता न चुनें।
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