ख़बर रफ़्तार, चंडीगढ़: पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित (Banwari Lal Purohit) का अचानक अपने पद से इस्तीफा देने को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद राज्यपाल ने अपना इस्तीफा दे दिया।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जिस प्रकार से चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव में वोटों को लेकर विवाद पैदा हुआ है उससे भाजपा को फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है। विपक्ष को बैठे बिठाए पार्टी पर सीधे आरोप लगाने का मौका मिल गया है। चूंकि बनवारी लाल पुरोहित यूटी चंडीगढ़ के प्रशासक भी रहे हैं इसलिए इस विवाद की जिम्मेवारी उन पर भी आती है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस बात को महसूस कर रहे हैं कि मेयर का एक छोटा सा चुनाव जीतने के लिए जिस प्रकार से पार्टी की फजीहत हो रही है कहीं उसका नुकसान आने वाले लोकसभा चुनाव में ही न हो जाए।
यह भी पढ़ें: आडवाणी को भारत रत्न… सीएम योगी योगी ने दी बधाई, प्रशंसा में कही दी बड़ी बात
पुरोहित के आने के बाद राजभवन आया विवादों में
वैसे कारण चाहे जो भी हो लेकिन यह तय है कि पंजाब में राजभवन विवादों में तभी से आया है जब से बनवारी लाल पुरोहित आए और उनका नई बनी आम आदमी पार्टी की सरकार से पेंच फंस गया। हालांकि इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।
यहां तक कि 2005 के जुलाई महीने में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी हाई कमान और केंद्र में कांग्रेस सरकार को बिना विश्वास में लिए पड़ोसी राज्य हरियाणा, राजस्थान के साथ हुए नदी जल समझौते संबंधी बिल विधानसभा में लाकर रद कर दिए और राज्यपाल जस्टिस ओपी वर्मा ने इसे उसी शाम को पारित कर दिया। दोनों नेताओं के बीच माहौल बहुत सौहार्दपूर्ण रहा।
पुरोहित और मान के बीच माहौल नहीं रहा सौहार्दपूर्ण
लेकिन बनवारी लाल पुरोहित और भगवंत मान के बीच ज्यादा समय तक माहौल सौहार्दपूर्ण नहीं रहा। बाबा फरीद मेडिकल यूनिवर्सिटी में हृदय रोगों के जाने माने विशेषज्ञ को जब राज्य सरकार वीसी लगाना चाहती थी तो पुरोहित के पूरा पैनल मांगने से शुरू हुआ विवाद इतना गहरा गया कि दोनों संस्थाओं के प्रमुखों को उनके अधिकारों और जिम्मेवारियों के प्रति सचेत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। बात चाहे विधानसभा के सत्र बुलाने की हो या उसमें पारित बिलों पर मुहर लगाने या फिर यूनिवर्सिटी के वीसी लगाने की हो… बनवारी लाल पुरोहित और भगवंत मान के बीच विवाद तीखा ही होता गया।
यही नहीं, चुनी हुई सरकार के रहते हुए राज्य के मुद्दों में हस्तक्षेप न करने की परंपरा को तोड़ते हुए बनवारी लाल पुरोहित ने मौजूदा सरकार को कटघरे में खड़ी करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। खास तौर पर ड्रग्स के मुद्दे को लेकर वह आए दिन सीमावर्ती जिलों के दौरे पर निकल जाते और वहां आम लोगों से बात करके ऐसी टिप्प्णियां करते कि राज्य सरकार की इसमें काफी फजीहत होती।
+ There are no comments
Add yours