उत्तराखंड: निकायों में शामिल होंगे छावनियों के सिविल क्षेत्र, रक्षा मंत्रालय ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट

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खबर रफ़्तार, लैंसडौन:  प्रदेश में निकाय चुनाव से पहले सात छावनियों के सिविल क्षेत्र नगर निकायों में शामिल करने की कवायद तेज हो गई है। रक्षा मंत्रालय ने सभी छावनियों की स्टेटस रिपोर्ट एक जनवरी तक मांगी है। वहीं, मंत्रालय की वर्चुअल बैठक भी होने जा रही है, जिसमें शासन के अधिकारी शामिल होंगे।

दरअसल, लंबे समय से छावनियों के सिविल क्षेत्र को नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायतों में शामिल करने की कवायद चल रही है। इसमें कई जगहों पर क्षेत्र बड़ा होने पर नए नगर निकाय बनाने की भी संभावना है। इसमें उत्तराखंड की सात छावनी लैंसडौन, अल्मोड़ा, देहरादून, क्लेमेंटटाउन, नैनीताल, रानीखेत, रुड़की शामिल हैं।

शहरी विकास निदेशालय और छावनियों के स्तर पर कई बार दिल्ली में बैठक हो चुकी है। अब रक्षा संपदा महानिदेशालय कार्यालय ने प्रधान निदेशक रक्षा संपदा को एक पत्र भेजा है। इसमें कहा गया है कि एक जनवरी तक संबंधित कमांड के अंतर्गत आने वाली छावनियों की स्टेटस रिपोर्ट तय फॉर्मेट में मंत्रालय को उपलब्ध कराई जाए। उत्तराखंड की सभी छावनियां सेंट्रल कमांड के अंतर्गत आती हैं।

अखिल भारतीय कैंट बोर्ड सिटीजन वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य हितेश शर्मा ने बताया कि रक्षा मंत्रालय के डायरेक्टरेट जनरल डिफेंस एस्टेट के डीडीजी (कैंट्स ) अरविंद कुमार द्विवेदी की ओर से प्रधान निदेशक रक्षा संपदा को पत्र भेजकर छावनी के सिविल एरिया को अलग करने की कवायद के बारे में रिपोर्ट मांगी गई है।

इस संबंध में जल्द ही मंत्रालय के स्तर पर एक वर्चुअल बैठक भी होने वाली है, जिसमें उत्तराखंड सरकार की ओर से अधिकारी शामिल होंगे। माना जा रहा है कि प्रदेश के आगामी निकाय चुनाव से पहले ही ये सभी छावनी सिविल क्षेत्र राज्य के नगर निकायों के अधीन आ जाएंगे। हाल में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने जहां लैंसडोन के पर्यटन विकास की गतिविधियों को बढ़ाने का मामला राज्यसभा में उठाया था तो वहीं विधायक दिलीप रावत लंबे समय से लैंसडोन छावनी के सिविल क्षेत्र को नगर निकाय के हवाले करने की मुहिम चला रहे हैं।

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बदलाव से ये होगा लाभ
इन क्षेत्रों के नगर निकायों में शामिल होने के बाद लोगों के तमाम प्रमाणपत्रों से लेकर सभी विकास संबंधी कार्य नगर निकायों व संबंधित विकास प्राधिकरणों के अधीन आ जाएंगे। यहां छावनी बोर्ड के चुनाव के बजाए नगर निकाय चुनाव होंगे, जिनमें मेयर या पालिकाध्यक्ष चुने जाएंगे। हाउस टैक्स आदि कार्य भी निकाय में होंगे। विकास की गतिविधियों में तेजी आएगी क्योंकि छावनियों के पास अपेक्षाकृत कम बजट होता है।

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