यूपी के इस हॉट सीट की अजब है कहानी, यहां गोरक्षपीठ की आभा में उलझा जातीय समीकरण

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ख़बर रफ़्तार, गोरखपुर: गोरक्षपीठ यानी नाथ पंथ की शीर्ष पीठ। इस पीठ की आभा ने गोरखपुर को उत्तर प्रदेश का पावर सेंटर बना दिया है। साढ़े तीन दशक से गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र की सियासी सरगर्मी पर पूरे देश की नजर है। पीठ की ”खड़ाऊÓ लेकर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे सांसद रवि किशन उसी आभा मंडल के सहारे दूसरी बार सांसद बनने की राह पर हैं।

गोरखपुर सीट के संसदीय चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो 1984 तक हुए आठ चुनावों में यहां छह बार कांग्रेस का दबदबा रहा। इस बीच सिर्फ दो बार कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी थी। 1967 में गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ से और 1977 की आपातकाल विरोधी लहर में जनता पार्टी के प्रत्याशी हरिकेश बहादुर से।

इसके पहले 1967 में तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ और 1969 में उनके ब्रह्मलीन होने के बाद महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। राममंदिर आंदोलन के दौर में 1989 के चुनाव में महंत अवेद्यनाथ ने दोबारा राजनीति में वापसी की। उसके बाद गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र पर गोरक्षपीठ के दबदबे का सिलसिला चल पड़ा।

1989 का चुनाव महंत अवेद्यनाथ ने हिंदू महासभा के प्रत्याशी के रूप में लड़ा था, उसके बाद वह और उनके उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ लगातार भाजपा के दिग्गज नेताओं की कतार में शामिल होकर लड़ते और जीत हासिल करते रहे।

बीते दो लोकसभा चुनाव की बात करें तो गोरखपुर व बस्ती मंडल की सभी नौ सीटों पर गोरक्षपीठ के आभामंडल से भाजपा के प्रत्याशियों को जिताते रहे। इस क्षेत्र को भगवा खेमे का गढ़ बनाने का श्रेय गोरक्षपीठ को जाता है। योगी आदित्यनाथ के 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरक्षपीठ का चेहरा भले ही संसदीय सीट पर नहीं दिखता है, लेकिन एक साल के उप चुनाव वाले कार्यकाल को हटा दें तो 2019 से वर्तमान सांसद रवि किशन खुद को गोरक्षपीठ का सेवक और पीठ की खड़ाऊ रखकर सेवा करने वाला बताकर यह कहने से नहीं चूकते कि वह योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में ही चुनाव लड़ रहे हैं।

उधर गठबंधन प्रत्याशी 2018 के उप चुनाव मेंं जातीय समीकरण के जरिये सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद (वर्तमान में संतकबीर नगर से भाजपा प्रत्याशी) को मिली जीत को उदाहरण मानकर एक बार फिर मंदिर की आभा में उलझे नजर आ रहे। इसे नजरअंदाज कर कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के सारे समीकरण धरे रह गए और गोरखपुर की सीट वापस भगवा खेमे में आ गई है।

निषाद प्रत्याशियों पर ही दांव लगाती है सपा

निषाद बहुल संसदीय क्षेत्र मानकर सपा गोरखपुर संसदीय सीट पर निषाद प्रत्याशियों के जरिये ही दांव आजमाती रही है। हालांकि आम चुनाव में यह हमेशा बेअसर ही साबित हुआ है। पिछली बार निषाद प्रत्याशी रामभुआल निषाद को रवि किशन से मिली करारी हार के बाद एक बार फिर सपा ने पुरानी रणनीति अपनाते हुए एक बार फिर निषाद प्रत्याशी काजल को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन सपा का यह दांव सफल होगा, इसपर संशय इसलिए दिख रहा, क्योंकि निषाद बिरादरी के वोटों पर अधिकार बताने वाली निषाद पार्टी भाजपा की सहयोगी होने के कारण रवि किशन के साथ है।

उधर रवि किशन खुद को गोरक्षपीठ की खड़ाऊ रखकर सांसदी करने वाला बता रहे हैं। यह मंदिर की सीट है और फिर मंदिर की ही रहेगी, इसका दावा कर रहे हैं। भाजपा और रवि किशन इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि गोरक्षपीठ के प्रति आस्था ने हमेशा ही जातीय समीकरणों को ध्वस्त किया है। लिहाजा उनकी रणनीति उसी आस्था को आगे कर एक बार फिर यह संसदीय सीट को अपने नाम पर है।

गोरक्षपीठ से जुड़े सांसद

वर्ष       सांसद

1967 महंत दिग्विजयनाथ

1970 महंत अवेद्यनाथ (उपचुनाव)

1989 महंत अवेद्यनाथ

1991 महंत अवेद्यनाथ

1996 महंत अवेद्यनाथ

1998 योगी आदित्यनाथ

1999 योगी आदित्यनाथ

2004 योगी आदित्यनाथ

2009 योगी आदित्यनाथ

2014 योगी आदित्यनाथ

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