खबर रफ़्तार, नई दिल्ली: लोकसभा ने मंगलवार को गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को आरक्षण देने वाला बिल पास कर दिया। ये बिल इसलिए पास की गई क्योंकि राज्य में एसटी आबादी एससी से अधिक होने के बावजूद कोई आरक्षित सीट नहीं थी। उधर राज्यसभा ने मंगलवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को छह महीने और बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर दिया।
लोकसभा ने मंगलवार को गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को आरक्षण देने वाला बिल पास कर दिया। इस दौरान विपक्ष बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर चर्चा की मांग को लेकर विरोध करता रहा। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गोवा राज्य की विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन विधेयक, 2025 को चर्चा और पारित करने के लिए पेश किया। हंगामे के बीच यह बिल ध्वनिमत से पास हो गया।
एसटी की संख्या ज्यादा, फिर भी नहीं था कोई आरक्षण
आरक्षण को लेकर बिल में बताया गया है कि गोवा में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार काफी बढ़ी है। 2011 में गोवा की कुल आबादी 14,58,545 थी, जिसमें एससी की आबादी 25,449 और एसटी की आबादी 1,49,275 थी। इसके बावजूद, 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में एसटी समुदाय के लिए कोई भी सीट आरक्षित नहीं है, जबकि एससी के लिए एक सीट आरक्षित है।
क्या है इस बिल को पास करने का उद्देश्य
बता दें कि बिल का मकसद इस असमानता को दूर करना है ताकि एसटी समुदाय को भी संविधान में दिए गए आरक्षण का लाभ मिल सके। यह बिल पिछले साल यानी 6 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन अब जाकर पारित हुआ है। यह संसद के मौजूदा मानसून सत्र में लोकसभा द्वारा पारित किया गया पहला बिल है। बिल पास होने के बाद सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन छह महीने और बढ़ा, राज्यसभा में प्रस्ताव पास
राज्यसभा ने मंगलवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को 6 महीने और बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर दिया। यह अवधि 13 अगस्त 2025 से शुरू होगी। इससे पहले 30 जुलाई को लोकसभा इस प्रस्ताव को पहले ही मंजूरी दे चुकी है। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यह प्रस्ताव सदन में पेश किया, जिसे भारी विपक्षी हंगामे के बीच ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
बता दें कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पहली बार 13 फरवरी 2025 को लगाया गया था, जब मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था। बीते करीब दो वर्षों से राज्य में हिंसा, जातीय टकराव और राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। इन हालातों के चलते राज्य सरकार को संविधान के अनुरूप काम करने में असमर्थ माना गया।
उड़ानों में हंगामा करने वाले 48 यात्री ‘नो-फ्लाई लिस्ट’ में
मंगलवार को केंद्र सरकार ने बताया कि इस साल 30 जुलाई तक 48 यात्रियों को ‘नो-फ्लाई लिस्ट’ में डाला गया है। यानी अब ये यात्री किसी विमान में सफर नहीं कर सकते। नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने राज्यसभा में यह जानकारी दी। पिछले कुछ वर्षों में भी बड़ी संख्या में ऐसे यात्रियों को इस लिस्ट में डाला गया था, जहां 2024 में 82 और 2023 में 110 यात्रियों पर प्रतिबंध लगाया गया। यह कार्रवाई विमान में अनुशासनहीन या हिंसक व्यवहार के कारण की जाती है।डीजीसीए के नियमों के मुताबिक, तीन स्तर पर यात्रियों की बदसलूकी को वर्गीकृत किया जाता है।
इसमें लेवल कुछ प्रकार है कि लेवल एक में हल्का व्यवहार, जैसे जोर-जोर से बोलना। इसके लिए तीन महीने के लिए प्रतिबंध लगाया जाता है। वहीं दूसरे लेवल में शारीरिक या अपमानजनक व्यवहार। इसके तहत छह महीनों के लिए प्रतिबंध लगाया जाता है। वहीं अब बात अगर तीसरे लेवल की करें तो गंभीर हिंसा या खतरा होने के आधार पर कम से कम 2 साल या उससे अधिक समय के लिए प्रतिबंध लगाया जाता है।
इस साल अब तक 6 विमान इंजनों में खराबी और 3 बार ‘मेडे कॉल’
इसके साथ ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने बताया है कि साल 2025 में जनवरी से जुलाई तक 6 बार विमान के इंजन बंद होने की घटनाएं और 3 बार ‘मेडे कॉल’ की घटनाएं सामने आई हैं। ये जानकारी नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने राज्यसभा में दी।
किन एयरलाइनों में हुए इंजन बंद होने के मामले?
मंत्रालय ने बताया कि इंडिगो और स्पाइसजेट में दो-दो बार इंजन बंद हुआ। एयर इंडिया और एलायंस एयर में एक-एक बार ऐसी घटना हुई। जब किसी विमान को उड़ान के दौरान गंभीर खतरा होता है और तत्काल मदद चाहिए होती है, तो पायलट तीन बार मेडे, मेडे, मेडे कहकर एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क करता है।
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