
ख़बर रफ़्तार, हल्द्वानी: सूचना प्रौद्योगिकी के युग में डिजिटलीकृत प्रणाली का मतदाता जागरूकता और चुनावी प्रचार पर गहरा प्रभाव पड़ा है। निर्वाचन आयोग लोगों को जागरूक करने के लिए इंटरनेट मीडिया के तमाम मंचों का प्रयोग कर रहा है। वहीं, राजनीतिक दल और प्रत्याशी चुनाव कैंपेनिंग के लिए डिजिटल मार्केंटिंग पर जोर दे रहे हैं। हालांकि, चुनाव आयोग आधुनिक और परंपरागत तरीकों के प्रयोग पर संतुलन बनाए हुए है। मगर सियासी प्रचार के बदले चलन से प्रिंटिंग कारोबार चौपट हो गया है।
इंटरनेट मीडिया प्रचार में युवाओं पर फोकस
डिजिटल मार्केटिंग कंपनी वद्नम मीडिया के सोमबीर कौशिक का कहना है कि 2014 चुनाव में इंटरनेट मीडिया से प्रचार का बाजार सिर्फ 20 प्रतिशत था। जबकि 2019 में 40 प्रतिशत पहुंचा और इस चुनाव में बाजार 80 प्रतिशत पहुंच गया है। वहीं कैंपेनिंग का ट्रेंड काफी बदल गया है। साथ ही नवाचारों की काफी मांग है। इस चुनाव में युवाओं पर फोकस करते हुए डिजिटल प्रचार सामग्री तैयार की जा रही है। नए विचारों के अनुसार सामग्री तैयार की जा रही है।
पोस्टर गायब, अब मीम्स और रील का ट्रेंड
वर्चुअल आइज स्टार्टअप के दीपांशु कुंवर अपनी टीम के साथ डिजिटल कैंपेनिंग का काम कर रहे हैं। दीपांशु का कहना है कि प्रचार का तरीका पूरी तरह बदल गया है। पहले चुनाव के दौरान पोस्टरों को दीवारों पर चस्पा किया जाता था। मगर अब वह मीम्स और डिजिटल पोस्टर के माध्यम से इंटरनेट मीडिया के मंचों पर प्रचार की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। साथ ही प्रत्याशियों की ओर से रील्स की सबसे ज्यादा डिमांड है। ऐसे में चुनावी सभा और रैलियों की रील्स में नए प्रयोग कर तैयार हो रहे हैं।
इस बार यूनीपोल से प्रचार की डिमांड कम
रचनाकार विज्ञापन कंपनी के मधुकर श्रोत्रिय का कहना है कि पिछले चुनावों तक यूनीपोल से प्रचार की सबसे ज्यादा डिमांड रहती थी। साथ ही स्थिति यह होती थी कि स्थान नहीं मिलता था। इस चुनाव में यूनीपोल पर फ्लैक्स की डिमांड ही नहीं है। साथ ही प्रचार सामग्री छपवाने का आर्डर भी 10 प्रतिशत तक ही रह गया है। उनका कहना है कि डिजिटल प्रचार के दौर में इंटरनेट मीडिया से कैंपेनिंग का प्रभाव बढ़ने से ऐसा देखने को मिल रहा है।
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