ख़बर रफ़्तार, देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि देवभूमि से निकलने वाली मां गंगा की भांति इस सदन से निकलने वाली समान अधिकारों की ये गंगा हमारे नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करेगी। अन्य राज्यों से भी अपेक्षा है कि वे इस कानून की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
सीएम धामी ने विधानसभा सत्र के तीसरे दिन 7 फरवरी को सदन में कहा कि हमारी सरकार ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लाने का वायदा किया था। सरकार गठन के तुरंत बाद पहली कैबिनेट की बैठक में समान नागरिक संहिता बनाने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अनेकता में एकता भारत की विशेषता है। यह विधेयक उसी एकता की बात करता है, जिसका नारा हम वर्षों से लगाते आए हैं। आजादी के अमृत काल में सभी का कर्तव्य है कि एक समरस समाज का निर्माण करें, जहां संवैधानिक प्रविधान सभी के लिए समान हों।
नागरिकों व समुदायों में भेद की खाई को अब भरेंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में उल्लेख होने के बावजूद समान नागरिक संहिता के विचार को दबाए रखा गया। यह सत्य वही है, जिसे वर्ष 1985 के शाह बानो केस के बाद भी स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने सवाल दागे कि नागरिकों के बीच भेद और समुदायों के बीच असमानता की खाई क्यों खोदी गई। लेकिन, अब इस खाई को भरा जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों की शासन व्यवस्था ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। उसी नीति को अपनाकर उन्होंने कभी सबके लिए समान कानून का निर्माण नहीं होने दिया। संविधान सभा ने समान नागरिक संहिता से संबंधित विषयों को समवर्ती सूची का अंग बनाया, ताकि केंद्र व राज्य की सरकारें अपने लिए कानून बना सकें। आखिर स्वतंत्रता के बाद 60 वर्षों तक राज करने वालों ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के बाद में विचार तक नहीं किया।
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