ख़बर रफ़्तार, रुड़की: हरिद्वार के रुड़की और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में आज ईद उल अजहा के त्यौहार पर ईदगाहों में चिलचिलाती धूप के बीच नमाज अदा की गई है. ईदगाह में हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोगों ने ईद उल अजहा की नमाज अदा की है. इस दौरान पुलिस और प्रशासन की तरफ से सुरक्षा को लेकर कड़े इंतजाम भी किए गए.
बता दें कि आज देशभर में ईद उल अजहा का त्यौहार मनाया जा रहा है. रुड़की में भी ईद उल अजहा का त्यौहार बड़ी सादगी के साथ मनाया जा रहा है. ईदगाह में नगर और आसपास क्षेत्र से मुस्लिम समाज के लोग ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के लिए पहुंचे. हालांकि इस दौरान चिलचिलाती धूप यानी कि तेज गर्मी रही. बावजूद इसके सभी मुस्लिम समाज के लोगों ने ने ईद उल अजहा की नमाज अदा की. ईदगाह में मुफ़्ती सलीम के द्वारा नमाज पढ़ाई गई.
इस दौरान मुफ़्ती सलीम ने बताया कि आज गर्मी बहुत ज्यादा हो रही है. बावजूद इसके बड़े ही इत्मीनान के साथ मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज़ अदा की गई. नमाज के समय ईदगाह के पास सुरक्षा को देखते हुए पुलिस बल भी मौजूद रहा. इस दौरान उन्होंने कुर्बानी को लेकर भी सभी से अपील की है कि कुर्बानी करते समय सफाई का ध्यान जरूर रखें. कोई भी शख्स मोबाइल से वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड न करे. इससे दूसरे धर्म के लोगों को परेशानी हो सकती है. इसी के उन्होंने कुर्बानी का मकसद भी बताया हैय
क्या है “ईद उल अजहा” पर कुर्बानी का मकसद?
किसी भी हलाल जानवर को अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने की नीयत से ज़िबह (कुर्बानी) करना उस वक्त से शुरू हुआ जब से हजरत आदम अलै. सलाम दुनिया में तशरीफ लाए और दुनिया आबाद हुई. सबसे पहले कुर्बानी हज़रत आदम के बेटों हाबील व काबिल ने दी (उर्दू में जिसे क़ुर्बानी कहा जाता है). असल में यह शब्द क़ुर्बान बा वज्न क़ुरआन है, क़ुर्बान हर उस चीज़ को कहा जाता है जिसको अल्लाह के क़रीब होने का माध्यम बनाया जाए. चाहे वह जानवर का ज़िबह करना हो या आम सदक़ा खैरात क़ुरआन-ए-करीम ने ज़्यादा तर जानवर के ज़िब्ह करने के मतलब में ही क़ुर्बानी शब्द का प्रयोग किया गया है. दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह के हुक्म को मानते हुए पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम की सुन्नत पर अमल करते हुए ईद-उल-अज़हा के दिन साल भर में क़ुर्बानी करते हैं. शरीअत-ए-मोहम्मदिया में क़ुर्बानी को वाजिब क़रार दिया गया है. वहीं क़ुर्बानी पर ग़ौर किया जाए तो इसका दस्तूर हज़रत आदम अलै. के दुनिया में तशरीफ़ लाने और दुनिया के आबाद होने के साथ से ही चला आ रहा है.
सबसे पहले हज़रत आदम के दो बेटों ने दी कुर्बानी
सब से पहली क़ुर्बानी हज़रत आदम के दो बेटों हाबील व क़ाबील ने दी. हाबील ने एक मेंढे की क़ुर्बानी पेश की. क़ाबील ने अपने खेत की फसल से कुछ अनाज सदक़ा कर पेश की. दस्तूर के मुताबिक आसमान से आग नाज़िल हुई और आग ने हाबील के मेंढे को खा लिया. क़ाबील के गल्ले को छोड़ दिया. उस ज़माने में क़ुर्बानी के क़बूल होने की यही पहचान थी कि जिस क़ुर्बानी को आसमान से आग आकर निगल जाती, वह क़बूल समझी जाती. आखरी नबी हज़रत मोहममद स.अ. व. के समय में क़ुर्बानी के गोश्त व माल-ए-गनीमत को हलाल कर दिया गया. क़ुर्बानी की हैसियत व इबादत वैसे तो हज़रत आदम अलै. सलाम के ज़माने से जाएज़ है. लेकिन ख़ास तौर पर यह हज़रत इब्राहिम अलै. के एक किस्से से संचालित होती है. हर एक यादगार की हैसियत से शरीअत-ए-मोहम्मदिया में क़ुर्बानी को वाजिब क़रार दिया गया.
एक रिवायत के मुताबिक हज़रत इब्राहीम अलै. की काफी तम्मननाओं व दुआओं के बाद 86 वर्ष में एक बेटे ने जन्म लिया जिनका नाम इस्माइल अलै. रखा गया. जब हज़रत इस्माइल की आयु 13 वर्ष की हुई (या यह समझा जाए कि यह बच्चा इस लायक़ हो गया कि बाप के साथ चलकर उनके कामों में मददगार बन सके) तो हज़रत इब्राहीम अलै. ने अपने बेटे से कहा कि मेरे प्यारे बेटे मैंने ख्वाब (सपने) में देखा है कि में तुझको ज़िब्ह कर रहा हूं. बताओ इसमें तुम्हारी क्या राय है. क्योंकि नबी का सपना (ख्वाब) ख़ुदा का हुक्म (आदेश) होता है, इस लिए बताओ कि खुदा के इस हुक्म (आदेश) की तामील के लिए क्या तुम तैयार हो. इस पर बेटे इस्माइल ने जवाब दिया कि अब्बा जान आप वह काम करें जिसके लिए ख़ुदा हुक्म (आदेश) देता है.
मुझे इंशाल्लाह आप साबरीन में से पाएंगे. तब हज़रत इब्राहीम बेटे इस्माइल को साथ लेकर बेटे की क़ुर्बानी करने के लिए चल दिए. इस अवसर पर शैतान हज़रत समाइल अलै. की वालिद (मां) के पास इंसान के वेश में पहुंचा और कहा कि हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माइल को ज़िब्ह करने के लिए ले जा रहे हैं. उनकी मां ने जवाब दिया कि कोई बाप अपने बेटे को ज़िब्ह नहीं करता. शैतान ने कहा कि हज़रत इब्राहीम कहते हैं कि उन्हें ऐसा करने के लिए खुदा ने हुक्म (आदेश) दिया है., इस पर हज़रत इस्माइल की मां ने जवाब दिया कि अगर खुदा ने हुक्म दिया है तो आवश्यक पूरा करना चाहिए.
शैतान ने मुंह की खाई
वहीं, शैतान ने मुंह की खा कर हज़रत इब्राहीम ओर हज़रत इस्माइल को बहकाना चाहा और अपना मक़सद पूरा करने के लिए तीन बार उनका रास्ता रोका. तब हज़रत इब्राहीम ने तीनों बार शैतान को सात-सात कंकरियां मारीं. इसके बाद शैतान बाधा नहीं डाल सका और वह क़ुर्बानगाह पहुंचे. तब बेटे इस्माइल ने कहा कि अब्बा जान पहले मुझे अच्छी तरह बांध दीजिए फिर छूरी तेज़ी के साथ मेरी गर्दन पर चलाइये, अपने कपड़ों को मेरे खून के छींटों से बचाइये, मेरी मां खून के छींटे देखेगी तो उन्हें ज़्यादा सदमा होगा.
बेटे के जवाब पर खुशी का इज़हार
वहीं, हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माइल के इस जवाब पर खुशी का इज़हार किया और उन्हें प्यार कर के नम आंखों से बांधना शुरू किया और करवट से लिटा कर ज़िब्ह करना शुरू किया. लेकिन छुरी से इस्माइल की गर्दन को कोई इज़ा (नुकसान) नहीं आई. इतने में अल्लाह का हुक्म (आदेश) सुनाई दिया कि इब्राहिम तुमने अपना ख्वाब (सपना) सच कर दिखाया और साथ ही एक दुम्बा हज़रत इस्माइल की जगह क़ुर्बानी के लिए नाज़िल (पेश) कर दिया गया. यह अमल खुदा को इतना पसंद आया कि अल्लाह ने हलाल जानवर की क़ुर्बानी को क़यामत तक के लिए जारी रखने का कानून बना दिया. अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह के आमाल व अफ़आल को पसंद फरमा कर क़यामत तक उनकी यादगार को ज़िंदा रखने के लिए उनकी नक़ल करने को इबादत क़रार दे कर अपने बंदों पर वाजिब कर दिया कि जिस तरह हज में तीनों जुमरातों व स्थान जहाँ शैतान ने बहकाना चाहा था पर कंकरियां मारना व हलाल जानवर की क़ुर्बानी करना हज़रत इब्राहीम की सुन्नत (यादगार) है. जिस तरह मुसलमान और सदक़ा व फित्र वाजिब है, उसी तरह ईद-उल अज़हा के मौके पर क़ुर्बानी भी वाजिब है. वहीं जिस जानवर की क़ुर्बानी की जाती है, उसके जिस्म पर जितने बाल होते हैं, उनके बराबर क़ुर्बानी करने वाले के नामाए आमाल में लिख दी जाती है.
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