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Saturday, July 27, 2024
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उत्तराखंड में आपदा के सटीक विश्लेषण से तैयार होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम, खतरे से पहले बजेगा सायरन

ख़बर रफ़्तार, देहरादूनः  तमाम आपदाओं को झेल रहे उत्तराखंड के लोगों को जल्द प्राकृतिक आपदाओं के खतरों की आहट पहले ही सुनाई देने लगेगी. यह सब मुमकिन होगा उत्तराखंड में स्थापित किए जा रहे मल्टी हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम (Multi Hazard Warning System) से. यह सिस्टम प्रदेश में विभिन्न आपदाओं की भविष्यवाणी कर लोगों को पहले ही खतरे का आभास करवा देगा. इसके जरिए प्राकृतिक आपदाओं से राज्य में होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा. हालांकि, फिलहाल इस सिस्टम को तैयार करने की तैयारी प्राथमिक चरण पर ही चल रही है. उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग इसके लिए केंद्र सरकार से मिले फ्रेमवर्क के आधार पर डीपीआर बनाने में लगा हुआ है.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के अलावा दूसरी कुछ संस्थाओं से जुड़े जानकार भी इस सिस्टम के लिए काम कर रहे हैं. साथ ही भारत सरकार के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) के सदस्य को भी इसमें जोड़ा गया है. खास बात यह है कि पहले चरण में कुल करीब 125 करोड़ रुपए की स्वीकृति भी राज्य को इसके लिए मिल चुकी है. इस प्रोजेक्ट के लिए वर्ल्ड बैंक द्वारा फंडिंग की जानी है. जिसके लिए राज्य द्वारा पहले ही डीपीआर तैयार कर ली गई थी. लेकिन अब केंद्र ने एक फ्रेमवर्क देकर विस्तृत डीपीआर बनाने के लिए कहा है.

सायरन करेगा अलर्ट

 उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा कहते हैं कि मल्टी हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम विभिन्न आपदाओं की पहले ही सूचनाएं देने का काम करेगा. जिसके जरिए इन सूचनाओं का प्रसारण कर राज्य भर में सायरन के माध्यम से आम लोगों तक भी सूचना को पहुंचाया जा सकेगा. इसके लिए अलग-अलग चरणों में तैयारी की जा रही है और फिलहाल डीपीआर पर काम चल रहा है.

तीन चरणों में किया जाएगा ऑपरेट

 उत्तराखंड में अतिवृष्टि, भूस्खलन, जंगलों की आग, एवलॉन्च और बाढ़ जैसे कई खतरे बने रहते हैं. ऐसे में इन सभी आपदाओं से निपटने के लिए इनकी सूचनाएं पहले ही लोगों तक पहुंचाने से जुड़ा एक सिस्टम तैयार हो रहा है. हालांकि, इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग को लंबा समय लग सकता है. इसकी वजह यह है कि मल्टी हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम को जिन तीन चरणों मे ऑपरेट करना है, उसमें पहला चरण सबसे मुश्किल है. केंद्र द्वारा दिए गए फ्रेम वर्क के अनुसार राज्य में आपदाओं से जुड़े डाटा एकत्रित करना और इससे जुड़े कुछ अध्ययन भी आपदा प्रबंधन विभाग को करवाने होंगे. खास बात यह है कि विभिन्न आपदाओं से जुड़ा यह आंकड़ा जुटाना और फिर इसका विश्लेषण कर सटीक वार्निंग देने की स्थिति तक पहुंचना बेहद मुश्किल भी होगा.

इन आंकड़ों को जुटाना होगा मुश्किल

 इस अध्ययन में एक तरफ जहां अलग-अलग आपदाओं के लिए संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करना होगा, तो वहीं इस पूरे क्षेत्र में कितनी मात्रा में बारिश कितना प्रभाव डालेगी, इसका भी पूरा अध्ययन किया जाना होगा. लैंडस्लाइड को लेकर किस स्थिति में कितना नुकसान होगा, इससे जुड़ा अध्ययन भी इसमें शामिल किया जाएगा. कुल मिलाकर विभिन्न आपदाओं से जुड़े आंकड़े जुटाए जाएंगे और नए अध्ययन भी इसके लिए एकत्रित होंगे. इस तरह जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण किया जाएगा, तब जाकर सटीक वार्निंग की स्थिति तक आपदा प्रबंधन विभाग पहुंच पाएगा.

बनाया जाएगा कंट्रोल रूम

 दूसरे चरण के तहत इन जानकारी का पूरे प्रदेश में कंट्रोल रूम तक प्रसारण करने की व्यवस्था भी करनी होगी. इसके बाद राज्य भर में सायरन सिस्टम भी विकसित करने होंगे जो कि ऑटोमेटिक रूप से लोगों को खतरे को लेकर आगाह कर सकेंगे. इस तरह डाटा इकट्ठा करना और विश्लेषण करने के बाद इसका कंट्रोल रूम तक प्रसारण करने और फिर ऑटोमेटिक सायरन सिस्टम को विकसित करने के रूप में तीन चरण में इस सिस्टम पर काम होना है.

केरल में कर चुका है काम

बताया जा रहा है कि भारत सरकार पूरे देश में इस तरह के आपदा प्रभावित राज्यों में इस तरह के सिस्टम को विकसित करना चाहती है. मल्टी हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम पर केरल पहले ही काफी काम कर चुका है. जबकि अब उत्तराखंड भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है. वर्ल्ड बैंक की मदद से राज्य सरकार इस सिस्टम को जल्द से जल्द तैयार करने की कोशिश में जुटी है.

आपदा प्रबंधन से जुड़े जानकार कहते हैं कि यदि अर्ली वार्निंग सिस्टम जैसी प्रणाली राज्य में विकसित हो जाती है, तो इससे लोगों को फायदा मिलेगा और उत्तराखंड जैसे राज्य में इसके लिए प्रयास भी किए जाने चाहिए. हालांकि, जानकार यह भी साफ करते हैं कि प्रदेश में विभिन्न आपदाओं के लिए सटीक वार्निंग कर पाना बेहद मुश्किल है. भूकंप के लिए अभी इस तरह का कोई उपकरण उपलब्ध नहीं है. जबकि अतिवृष्टि जैसी समस्या के लिए भी सटीक वार्निंग करना इतना आसान नहीं दिखाई देता है.

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