ख़बर रफ़्तार, देहरादून: देश में वन पंचायतों की एकमात्र व्यवस्था वाले उत्तराखंड में आने वाले दिनों में इनके चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग के माध्यम से कराए जाएंगे। सरकार इसके लिए वन पंचायत नियमावली में संशोधन करने जा रही है। उच्च स्तर पर हुई दो बैठकों में इसे लेकर लगभग सहमति बन चुकी है।
चुनौतीपूर्ण रहे हैं वन पंचायतों के चुनाव
इतना महत्वपूर्ण दायित्व होने के बावजूद वन पंचायतों के चुनाव हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहे हैं। प्रत्येक वन पंचायत में सरपंच समेत नौ सदस्य होते हैं। असल में वन पंचायतों के चुनाव का जिम्मा राजस्व विभाग के पास है, लेकिन विभिन्न कारणों से इनके चुनाव कभी भी समय पर नहीं हो पाते। वह भी तब जबकि इनका पांच साल का कार्यकाल नियत है। इसके चलते कई वन पंचायतें उस रूप में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पातीं, जिसकी दरकार है। इसे देखते हुए सरकार ने वन पंचायत नियमावली में संशोधन का निश्चय किया है।
कैबिनेट से हरी झंडी का है इंतजार
चुनाव का जिम्मा राजस्व विभाग से हटाकर राज्य निर्वाचन आयोग को देने को लेकर पिछले कई दिनों से उच्च स्तर पर विमर्श चल रहा था। इसे लेकर अब करीब -करीब सहमति बन चुकी है। कैबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे।
वन पंचायतों को रोजगार से जोड़ने पर जोर
सरकार ने वन पंचायत नियमावली में कुछ अन्य संशोधन का भी इरादा जताया है। इसके तहत वन पंचायतों को स्वरोजगार से जोड़ा जाएगा। वन पंचायतों में औषधीय व सगंध पादपों की खेती की कार्ययोजना बन चुकी है। वन पंचायत नियमावली में यह संशोधन भी किया जा रहा है कि वनोपज के संबंध में वन पंचायतों को कुछ छूट दी जाए। इसे लेकर भी खाका तैयार हो चुका है और इसका प्रस्ताव भी कैबिनेट के समक्ष लाया जाएगा।
वन मंत्री ने कही ये बात
वन पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। इसी कड़ी में वन पंचायत नियमावली में संशोधन किए जाएंगे। इसके तहत वन पंचायतों के समय पर चुनाव, उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने समेत अन्य कदम उठाए जाएंगे। इस संबंध में जल्द ही कैबिनेट में प्रस्ताव आएगा। -सुबोध उनियाल, वन मंत्री
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