भारतीय शोधकर्ता की खोज: बिच्छू घास से बना कपड़ा देगा कैंसर से सुरक्षा

खबर रफ़्तार, ऊधम सिंह नगर: बिच्छू घास से कैंसर से बचाने वाला एक विशेष फैब्रिक विकसित किया गया है। यह कपड़ा यूवी किरणों से सुरक्षा प्रदान करेगा। इस शोध की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. दीप्ति परगाईं हैं।

बिच्छू घास और इसके पौधों के अपशिष्ट त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाएंगे। जीबी पंत कृषि विवि के सामुदायिक विज्ञान में शोधार्थी रही और वर्तमान में निफ्ट श्रीनगर के टेक्सटाइल डिजाइन विभाग में सहायक प्राध्यापक डाॅ. दीप्ति परगाईं ने एडवाइजर डाॅ. शहनाज जहां के मार्गदर्शन में बिच्छू घास और अन्य पौधों के अपशिष्ट से यूवी (अल्ट्रा वाॅयलेट) से सुरक्षित रखने वाला फैब्रिक बनाने में सफलता हासिल की है। इससे बने लिबास लोगों को कैंसर त्वचा जैसी बीमारियों से बचाएंगे। उन्हें इस तकनीक का पेटेंट भी हासिल हो गया है।

उत्तराखंड निवासी डॉ. दीप्ति का जन्म और पालन-पोषण यूपी में हुआ। फिर भी उनका अपनी पैतृक भूमि के लिए कुछ विशेष करने का सपना था। पंतनगर विवि ने उन्हें यह अवसर दिया और उन्होंने स्थानीय संसाधनों को आधार बनाकर अपना सपना साकार किया। डाॅ. दीप्ति ने बताया कि पहाड़ों में पाई जाने वाली औषधीय गुणों से भरपूर बिच्छू घास (अर्टिका डायोइका) अब यह खास बनने वाली है। सूर्य से निकलने वाली यूवी किरणें मानवीय त्वचा पर जलने से लेकर त्वचा कैंसर जैसे विभिन्न हानिकारक प्रभाव डाल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यूवी किरणों से त्वचा कैंसर के बारे में चेताया है। विदेशों में लोग सावधानी बरतते हैं लेकिन, भारत में लोग न तो इसके प्रति जागरूक हैं और न ही रोकथाम कर रहे हैं। देश के हिमालयी क्षेत्रों (उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश) सहित राजस्थान में भी उच्च यूवी इंडेक्स दर्ज किया गया है। ऐसे में बिच्छू घास से बने कपड़े लोगों को इन हानिकारक यूवी किरणों से बचा सकते हैं। इसलिए इस शोध में खादी सूती कपड़े के लिए यूवी सुरक्षात्मक फिनिश विकसित किया है। जिसमें उत्तराखंड की बिच्छू घास की पत्तियों के साथ साइट्रस लिमेटा के अपशिष्ट का उपयोग किया है।

ऐसे बना यूवी प्रोटेक्टिव फैब्रिक
डॉ. दीप्ति ने बिच्छू घास की पत्तियों और अन्य पौधों के अपशिष्ट से माइक्रोकैप्सूल तैयार कर उन्हें खादी सूती कपड़े पर चढ़ाया। इस तकनीक में कपड़े की अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्शन फैक्टर 277.60 तक दर्ज हुई, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार एक्सेलेंट श्रेणी है। खास बात यह कि 20 धुलाई के बाद भी कपड़े की यह क्षमता बनी रही। उनका यह शोध दि टेक्स्टाइल एंड लेदर रिव्यू जैसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

पेटेंट का गौरव सिर्फ डाॅ. दीप्ति को
बिच्छू घास का उपयोग अब तक भोजन, चाय और औषधि के रूप में किया जाता था। यूरोपीय देशों में इसके तनों से फैब्रिक जरूर बनाया गया लेकिन इसके पत्तों से कपड़ों पर यूवी प्रोटेक्टिव फिनिश विकसित करने और पेटेंट पाने का गौरव सिर्फ डॉ. दीप्ति ने हासिल किया है।

पांच वर्षों के शोध में हासिल की सफलता
डॉ. दीप्ति ने अपने मास्टर्स शोधकार्य में ही बिच्छू घास फाइबर से बने फैब्रिक पर प्राकृतिक रंगों से यूवी प्रोटेक्शन की वैल्यू एडिशन विकसित कर ली थी। यहीं से उन्हें इस पौधे की अद्भुत क्षमता का अंदाजा हुआ और इसी शोध ने आगे चलकर उनके पीएचडी कार्य की नींव रखी। यह शोध उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों के लिए मॉडल बन सकता है और भारत वैश्विक सस्टेनेबल फंक्शनल टेक्सटाइल्स क्षेत्र में अपनी पहचान मजबूत कर सकता है।

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