मणिपुर हिंसा की घटनाओं से लेकर अब तक: मोदी के दौरे के बाद क्या बदला है?

खबर रफ़्तार, मणिपुर: जिस मणिपुर में हिंसा को शुरू हुए दो साल हो चुके हैं, वहां अब क्या हालात हैं? बीते दो साल में ऐसा क्या-क्या हुआ है कि पीएम मोदी को यहां अब भी शांति की अपील करनी पड़ रही है? तनाव के इस माहौल के बीच प्रधानमंत्री का मणिपुर दौरा क्यों और कैसे संभव हो पाया? इसके अलावा उनकी सुरक्षा के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए? आइये जानते हैं…

प्रधानमंत्री नरेंद्र शनिवार (13 सितंबर) को मणिपुर पहुंचे। यहां पीएम ने राज्य की जनता को संबोधित करते हुए दो साल से फैले तनाव और हिंसा के मुद्दे पर भी बात की। उन्होंने कहा कि विकास के लिए शांति जरूरी है और मणिपुर आशा और शांति की भूमि है। पीएम ने अपील की कि मणिपुर की जनता हिंसा से आगे बढ़कर शांति का साथ दे, ताकि विकास हो सके। इतना ही नहीं उन्होंने विस्थापितों के लिए 500 करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया। साथ ही बिजली की समस्या को सुलझाने और राज्य को बेहतर तरह से जोड़ने का वादा किया।

पीएम के पूरे भाषण के केंद्र में दो विषय रहे। पहला- शांति की अपील और दूसरा विकास। ऐसे में यह जानना अहम है कि जिस मणिपुर में हिंसा को शुरू हुए दो साल हो चुके हैं, वहां अब क्या हालात हैं? बीते दो साल में ऐसा क्या-क्या हुआ है कि पीएम मोदी को यहां अब भी शांति की अपील करनी पड़ रही है? तनाव के इस माहौल के बीच प्रधानमंत्री का मणिपुर दौरा क्यों और कैसे संभव हो पाया? इसके अलावा उनकी सुरक्षा के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए? आइये जानते हैं…
पहले जानें- मणिपुर में क्यों भड़की थी हिंसा बीते दो साल में क्या-क्या हुआ?
1. मणिपुर में क्या रही सामुदायिक तनाव की वजह?
मणिपुर में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के बीच तनाव का दौर 2022 के अंतिम महीनों से ही शुरू हो गया था। हालांकि, यह चरम पर तब पहुंचा जब मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मैतेई समुदाय को लंबे समय से लंबित पड़ी उनकी अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग पर विचार करे। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद मणिपुर के दूसरे जनजातीय समुदायों खासकर कुकी समुदाय में डर बैठ गया कि उनके रहने वाले क्षेत्रों खासकर संरक्षित पहाड़ी क्षेत्रों में मैतेई समुदाय को बसने की इजाजत मिल जाएगी।

दरअसल, राज्य में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या करीब 60 प्रतिशत है। ये समुदाय मुख्यतः हिंदू है और इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। हालांकि, इतनी बड़ी आबादी जिस क्षेत्र में बसी है, वह पूरे मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 10 फीसदी ही है। दूसरी तरफ कुकी-जो और नगा समुदाय, जो कि मुख्यतः ईसाई धर्म से हैं और राज्य में मैतेई से कम हैं, वह 90 फीसदी इलाके में फैले हैं।

मौजूदा कानून के तहत मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी। अदालत में याचिकाकर्ता ने कहा कि 1949 में मणिपुर की रियासत के भारत संघ में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता थी। इसके बाद ही उच्च न्यायालय ने सरकार को नए निर्देश दिए थे।
2. राज्य में हिंसा की चिंगारी कैसे भड़की?
हाईकोर्ट के आदेश के महज कुछ हफ्ते के अंदर ही मणिपुर में हिंसा की चिंगारी भड़क उठी। इसकी शुरुआत 3 मई 2023 को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) की तरफ से किए गए ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च के साथ हुई। इस मार्च के दौरान मणिपुर के पहाड़ी जिलों में कोर्ट के निर्देश के खिलाफ प्रदर्शन भी शुरू हो गए। देखते ही देखते यह प्रदर्शन हिंसक हो गए और चुराचांदपुर से होते हुए पूरे राज्य में फैल गए।

हिंसा की इन घटनाओं में हजारों लोग अपने घर से विस्थापित होने को मजबूर हुए। आम लोगों के साथ पुलिसकर्मी और सैनिक भी इन हमलों का शिकार हुए। कई पुलिस स्टेशन और हथियारखाने लूटे गए।

अब जानें- मणिपुर में ताजा स्थिति कैसी?
मणिपुर में 2023 में हिंसा भड़कने के बाद से अब तक 260 लोगों की मौत हो चुकी है। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हजारों लोग अभी भी विस्थापित हैं और राहत कैंपों में रहने को मजबूर हैं। न तो मैतेई समुदाय के लोग उन क्षेत्रों में जा पा रहे हैं, जहां कुकी या अन्य समुदाय बहुसंख्यक हैं और न ही इसका उल्टा संभव है। सुरक्षाबल अब भी मैतेई और कुकी समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों के बीच बफर जोन में तैनात हैं, ताकि तनाव और हिंसा फिर न भड़के। इसके बावजूद पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले गुरुवार शाम को कुकी बहुल चुराचंदपुर जिले में दो स्थानों पर उपद्रवियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़प हुई। उपद्रवियों ने सड़कों पर लगे बैनर और कटआउट फाड़ दिए। वहीं, पियर्सनमुन गांव और फिलियन बाजार में प्रधानमंत्री के दौरे के लिए लगाए गए बैरिकेड्स को भी तोड़ दिया गया। चुराचांदपुर में व्यवस्था और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए अर्धसैनिक बलों द्वारा फ्लैग मार्च और गश्त जारी है।
दूसरी तरफ मणिपुर में राष्ट्रपति शासन अभी भी लागू है। यहां विधानसभा का कार्यकाल 2027 तक खत्म होना है। इतना ही नहीं म्यांमार से शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों के आने की घटनाएं भी दर्ज हुई हैं, जिनके चलते सरकार का ध्यान अब सीमाई इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने पर भी है।

किन सुरक्षा इंतजामों के बीच संभव हुआ पीएम मोदी का मणिपुर दौरा?
प्रधानमंत्री मोदी के मणिपुर दौरे से पहले इंफाल और चुराचांदपुर में सुरक्षा इंतजाम कड़े कर दिए गए। इस दौरे में सुरक्षा को लेकर गोपनीयता किस हद तक रही, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधिकारिक तौर पर दौरे की जानकारी अंतिम समय में ही सार्वजनिक हुई।

इंफाल में करीब 237 एकड़ में फैले कांगला किले और चुराचांदपुर के पीस ग्राउंड के आसपास बड़ी संख्या में राज्य और केंद्रीय बलों के जवान तैनात किए गए। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के लिए यहां जिस भव्य मंच का निर्माण किया गया, उसके आसपास मार्ग पर बैरिकेड्स लगा दिए गए। संवेदनशील और सीमांत क्षेत्रों में तलाशी अभियान चलाया गया। सीआरपीएफ ने पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में असामाजिक तत्वों की आवाजाही पर रोक लगाने के लिए अस्थायी चौकियां स्थापित कीं। इसके लिए केंद्रीय अधिकारी बीते कई हफ्तों से मणिपुर में डेरा जमाए थे और मैतेई और कुकी समुदाय के नेताओं के साथ बैठक भी कर रहे थे।
राज्य कर्मचारियों के साथ केंद्रीय सुरक्षा दल कांगला किले का चौबीसों घंटे निरीक्षण कर रहे हैं और राज्य आपदा प्रबंधन बल की नौकाओं को किले के चारों ओर की खाइयों में गश्त के लिए लगाया गया। 1891 में रियासत के विलय से पहले कांगला किला तत्कालीन मणिपुरी शासकों की सत्ता का प्राचीन केंद्र हुआ करता था। तीन तरफ खाइयों और पूर्वी तरफ इंफाल नदी से घिरा यह किला एक बड़े पोलो मैदान, जंगल, मंदिरों के खंडहर और राज्य पुरातात्विक कार्यालयों से घिरा है।

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