अनंत चतुर्दशी: 102 साल पुरानी परंपरा, जब दिन में निकलती थीं झांकियां

खबर रफ़्तार, इंदौर : इंदौर में गणेश विसर्जन की झांकियों की परंपरा 102 साल पुरानी है। पहली झांकी 1909 में हुकुमचंद मिल से निकली थी। अफीम का कारोबार बंद होने के बाद कपड़ा मिलों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, जो आज भी जारी है।

आज शनिवार की रात इंदौर की सड़कों पर फिर झिलमिलाती झांकियों का कारवां गुजरेगा। गणेश विसर्जन के मौके पर इंदौर में झांकियां निकालने का सिलसिला 100 साल से ज्यादा पुराना है। शहर में पहली झांकी 102 साल पहले हुकुमचंद मिल की निकली थी। दरअसल, इंदौर की पहचान कपड़ा मिलें थीं, जो देशभर में प्रसिद्ध थीं। शुरुआती दौर में मिलों की झांकियां दोपहर में निकलती थीं। अंधेरा हो जाने पर गैस बत्तियों का प्रयोग होता था। कालांतर में ये मिलें बंद हो गईं, लेकिन इनके श्रमिकों ने झांकियां निकालने की परंपरा नहीं रोकी। आज भी शासन, श्रमिक व सामाजिक संगठनों और जनसहयोग की मदद से हर साल अनंत चतुर्दशी पर झांकियां उत्साहपूर्वक निकाली जाती हैं। लाखों लोग इन झांकियों को देखने के लिए इंदौर की सड़कों पर रजतगा करते हैं और शहर की गौरवशाली परंपरा के साक्षी बनते हैं।

इंदौर में सार्वजानिक गणेश उत्सव की परंरपरा ज्ञानप्रकाश मंडल ने 1908 में शुरू की थी। तभी नगर के मिल मजदूरों ने झांकियों की परंपरा की शुरुआत की। नगर में सूती कपड़ा उद्योग की पहली स्टेट मिल 1864 में आरंभ हो गई थी परंतु  पहली निजी कपड़ा मिल 1909 में मालवा मिल के नाम से शुरू हुई। 1924 तक नगर में छह कपड़ा मिलें हो गई थीं, इनमें हजारों श्रमिक कार्य करते थे।

अफीम का कारोबार बंद हुआ तो मिलें शुरू हुईं
इंदौर में सूती वस्त्र उद्योग के आरंभ होने की मुख्य वजह अफीम का कारोबार बंद होना रही। अफीम के कारोबार के बाद कॉटन के व्यवसाय की और ध्यान दिया गया और सर सेठ हुकुमचंद, जिन्हें कॉटन किंग कहा जाता था, ने 1909 में प्रथम निजी इंदौर मालवा यूनाइटेड मिल आरंभ की। इसके बाद हुकुमचंद मिल, दी राजकुमार मिल, नंदलाल भंडारी मिल, राय बहादुर कन्हैया लाल भंडारी मिल, स्वदेशी कॉटन एंड फ्लोर मिल शुरू हुई थी।
मालवा मिल के शेयर 900 रुपये पर पहुंच गए थे
इंदौर की इन कपड़ा मिलों में हजारों श्रमिक कार्य करते थे। शहर के आर्थिक और कारोबारी विकास में इन मिलों और मजदूरों का बड़ा योगदान रहा। आरंभ में इंदौर के अधिकांश परिवारों का कोई न कोई सदस्य इन मिलों से रोजगार पाता था। उन घरों की रोजी रोटी इन मिलों से चलती थी। इतना ही नहीं आसपास के शहरों व राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग इन मिलों में काम करने के लिए इंदौर आए और यहीं बस गए। परदेशीपुरा के नाम से ही पता चलता है कि बाहरी लोगों ने यहां आकर रोजगार पाया और यहीं घर बार बसा लिया। मिलों में उच्च गुणवत्ता का कपड़ा बनने से इंदौर के कपड़े की पहचान विदेश तक हो गई थी। मालवा मिल के कपड़े की मांग पहले विश्व युद्ध के दौरान सर्वाधिक रही। इस कारण मालवा मिल के शेयर का मूल्य 900 रुपये तक पहुंच गया था।

1920 से 1925 के मध्य हुई झांकियों की शुरुआत 
1914 के बाद से नगर में गणेशोत्सव की धूम अधिक रहने लगी थी। आजादी के आंदोलन में मिल के श्रमिक भी भाग लेने लगे थे। कुछ इतिहासकार 1924 तो कुछ 1927 में हुकुमचंद मिल में पहली बार गणेश जी की स्थापना का वर्ष मानते हैं। हुकुमचंद मिल गणेश स्थापना का श्रेय मिल के सहायक मैनेजर पंत वैद्य को है। उनके मार्गदर्शन में पहली बार गणेश विसर्जन समारोह आयोजित किया गया। धीरे-धीरे गणेश उत्सव अन्य कपड़ा मिलों में भी आयोजित होने लगा। दत्त मंदिर कृष्णपुरा और दामूअण्णा द्वारा निर्मित झांकियां भी आकर्षण का केंद्र रहती थीं। गणेश विसर्जन समारोह बहुत ही साधारण स्तर पर आयोजित किया जाता था, केवल एक बग्गी में गणेश जी की प्रतिमा रखकर जुलूस के रूप मिल से सूर्यास्त से पूर्व छत्रीबाग लाई जाती और गणगौर घाट पर उसे विसर्जित किया जाता था, यह क्रम करीब 15 वर्ष तक चलता रहा।

आजादी के आंदोलन का प्रभाव  
गणेश विसर्जन समारोह को देश के स्वाधीनता आंदोलन ने बहुत अधिक प्रभावित किया। 1942 में इंदौर नगर में प्रजा का मंडल का अधिक प्रभाव था। इस वर्ष गांधीजी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में श्रमिकों का बहुत अधिक योगदान रहा, कई श्रमिक जेल गए। 1944 में अब श्रमिक जेल से रिहा हुए तो उस वर्ष गणेश विसर्जन समारोह में स्वाधीनता आंदोलन की झलक मिली। 1945 से गणेश विसर्जन जुलूस में राष्ट्रीय विषय की झांकियों की अधिकता रहने लगी  फिर तो मानो प्रतियोगिता चल पड़ी। प्रतिवर्ष नए रूप में  झांकियां सामने आने लगीं। कल्याण मिल में रूपचंद पंजाबी और स्वदेशी मिल में मिश्रीलाल की प्रतियोगिता ने झांकी को नया रूप दिया।

वीवी द्रविड़, रामसिंह भाई व गंगाराम तिवारी ने नया रूप दिया
मिल की झांकियों की परंपरा को आधुनिक रूप देने और उन्हें रोचक बनाने में श्रमिक संगठन इंटक का बहुत बड़ा योगदान रहा। इसमें इंटक नेता भी वीवी द्रविड़, राम सिंह भाई वर्मा और गंगाराम तिवारी के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता। 1947 से कई वर्षों तक झांकियों में गांधीजी, नेहरूजी और आजादी के आंदोलन से जुडी घटनाओं की प्रमुखता रही थी। बाद में समसामयिक मुद्दों पर झांकियां केंद्रित होने लगीं।

बिजली को चमत्कार मानते थे लोग
शुरुआती दौर में मिलों की झांकियां दोपहर में तीन से चार बजे के मध्य निकलती थी। अंधेरा हो जाने पर गैस बत्तियों का प्रयोग होता था। समय के साथ बदलाव आया और झांकियों में बिजली के बल्बों का प्रयोग आरंभ हुआ। उस वक्त बिजली का प्रयोग एक अजूबा और आश्चर्यजनक प्रयोग साबित हुआ।  बिजली को उस वक्त लोग एक चमत्कार मानते थे। 1907 में इंदौर में बिजली का आगमन हो गया था, परंतु इसका दायरा बहुत सीमित था। 1929 में इंदौर में ग्लेंसी पॉवर हाउस की स्थापना हुई। 1930 में मिलों की झांकियों में बिजली का थोड़ा सा प्रयोग किया गया। किसी पुतले की आंखों में चमक के लिए छोटे चमकीले बल्बों का इस्तेमाल किया गया।

1940 में लगे चलित जनरेटर
लगभग 1940 तक चलित जनरेटरों का झांकियों में प्रयोग आरंभ हो गया था। मिलों के कपड़ा उत्पादन में भांप/डीजल  इंजन से बिजली उत्पादन कर पावर जनरेट किया जाता था, इसका एक अलग विभाग हुआ करता यही जो एक स्थान पर फिक्स रहता था।

आपातकाल में निकली पर कोरोना में रुकी झांकियां
इंदौर में रंगपंचमी पर गेर उत्सव शहर की पहचान है, तो गणेश उत्सव की झांकियों की परंपरा सांस्कृतिक धरोहर हैं। इंदौर की कपड़ा मिलों की झांकियों की परंपरा शतकवीर हो गई है। यह कारवां कठिन परिस्थियों में भी जारी रहा। 1975 में आपातकाल के वक्त भी झांकियां निकाली गईं, लेकिन रात बारह बजे तक यह कारवां समाप्त कर दिया गया। झांकियों के 100 साल से ज्यादा के इतिहास में कई बार अधिक बारिश होने से झांकियां देरी से निकाली गईं पर यह परंपरा जारी रही। विश्व महामारी कोरोना के दौरान 2020 और 2021 में मिलों की झांकियों का यह कारवां ठहर गया था। हालांकि, हुकुमचंद मिल के मजदूरों ने गणेश जी प्रतिमा छोटे वाहन में रखकर झांकी के चुनिंदा मार्ग पर यात्रा निकाल कर परंपरा का दस्तूर पूरा किया था।

Anant Chaturdashi today: Indore's 102-Year-Old Tradition of Ganesh Visarjan Jhaankis

मिलें बंद, मॉल बनेंगे पर कायम रखें हौसला
भले ही आज आधुनिकता के दौर में इंदौर की सभी कपड़ा मिलें बंद हैं फिर भी झांकियों का झिलमिलाता कारवां नगर की सड़कों पर निकल रहा है। दर्शकों की भीड़ इस परंपरा का अलख जगाए रखने वालों का हौसला बढ़ाती है। अब मिलों की जमीनें बिक रही हैं, उन पर नए-नए प्रोजेक्ट और मॉल आदि आ रहे हैं, जिनसे भविष्य में झांकी निर्माण के लिए निर्माताओं को नया स्थान देखना होगा। मॉल संस्कृति के बीच मिलों की परंपरा जारी रहे, इस बात का इंदौर की जनता और शासन प्रशासन को रखना होगा, ताकि श्रमिकों और उनके परिवारों का हौसला कायम रहे।

नगर में यूं शुरू हुआ झांकियों का कारवां

  • 1-हुकुमचंद मिल-    102 वर्ष
  • 2-कल्याण मिल-    96 वर्ष
  • 3-स्वदेशी मिल-    96 वर्ष
  • 4-मालवा मिल-    91 वर्ष
  • 5-राजकुमार मिल-    90 वर्ष
  • 6-होप टेक्सटाइल मिल-76 वर्ष
  • 7-इंदौर नगर निगम-  30 वर्ष
  • 8-इंदौर विकास प्राधिकरण- 28 वर्ष
  • 9-खजराना गणेश मंदिर-  11 वर्ष

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