ख़बर रफ़्तार, हल्द्वानी: फरवरी में हल्द्वानी से सटी दो मुख्य कॉलोनियों में घंटों तक गुलदार गुर्राए थे। एक जगह तो पूरा कुनबा पहुंचा था। बमुश्किल इन्हें आबादी से दूर किया गया। दिसंबर-2023 में भी यही स्थिति थी। दूसरी तरफ पहाड़ पर बाघ नहीं चढ़ते। ये बात अब पुरानी हो चुकी है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने को लेकर दावे भले तमाम हों, लेकिन हकीकत यह है कि गुलदार पर्वतीय क्षेत्र के गांवों और शहरों की कॉलोनियों में घुस रहे हैं तो बाघ पहाड़ पर चढ़ चुका है। दूसरी तरफ वन विभाग के पास वन्यजीवों संग इंसानी आबादी की सुरक्षा के लिए भी कोई ठोस योजना नहीं है। सवाल उठता है कि आखिर इस स्थिति में मानव-वन्यजीव संघर्ष कैसे रुकेगा?
चिंता के साथ चुनौती
बाघों के व्यवहार में आया है परिवर्तन
दूसरी तरफ वन विभाग के सामने दोहरी चुनौती है। वन्यजीवों की सुरक्षा संग इंसानों को भी हमले से बचाना है। वहीं, सेवानिवृत्त पीसीसीएस बीडी सुयाल का मानना है कि कॉर्बेट में इंसानी गतिविधियों के लगातार बढ़ने के कारण भी बाघों के व्यवहार में परिवर्तन आया है।
शिफ्टिंग प्रस्ताव पर मंथन जारी
जंगल की धारण क्षमता प्रभावित होने की वजह से गुलदार के साथ शारीरिक तौर पर कमजोर बाघों को भी दूसरी जगह मूवमेंट करना पड़ रहा है। जंगल में संतुलन स्थापित करने को दूसरे राज्यों से प्रस्ताव मिलने पर बाघों को शिफ्ट करने की कवायद चल रही थी। लेकिन अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
बीते वर्षों में उत्तराखंड में ऐसी स्थिति रही
- 2000 से 2019 के बीच गुलदार के हमले में 402 लोगों की जान गई
- साल 2023 में जनवरी से अक्टूबर तक राज्य में 18 बाघों की मौत
- 2012 से जनवरी 2023 तक बागेश्वर डिवीजन में 83 गुलदारों की मौत 2012 से जनवरी 2023 तक तराई केंद्रीय प्रभाग में 28 गुलदारों की मौत
तीन साल में वन्यजीवों के हमले में इतनों की मौत व इतने घायल
वन्यजीव – मौत – घायल
- गुलदार – 63 – 295
- हाथी – 27 – 36
- बाघ – 35 27
- (नोट-आंकड़े उत्तराखंड में साल 2021 से 2023 के बीच के हैं)
अधिकारी ने कही ये बात
डीएफओ हिमांशु बांगरी का कहना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए दस वर्षीय योजना के तहत काम होना है। इस प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई है। उम्मीद है कि पहले वर्ष के कामों के लिए जल्द बजट जारी हो जाएगा। वहीं, वन संरक्षक दीप चंद्र आर्य का कहना है कि वन विभाग हर घटना को गंभीरता से लेकर बचाव के काम करता है।
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