शीतकालीन यात्रा को लेकर यात्रियों में नहीं दिख रहा उत्साह, दर्शन को पहुंच रहे कुछ ही यात्री

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ख़बर रफ़्तार, रुद्रप्रयाग:  केदारनाथ समेत द्वितीय व तृतीय केदारों के कपाट बंद होने के बाद शीतकालीन यात्रा शुरू हो जाती है, लेकिन नाममात्र की संख्या में ही भक्त बाबा के दर्शनों के दर्शनों को पहुंचते हैं।

इसके पीछे शीतकाल यात्रा को लेकर आम भक्तों में जानकारी का अभाव है, सरकार अब तक देश-विदेश के यात्रियों को शीतकालीन यात्रा के मातम के बारे में जानकारी उन तक नहीं पहुंच पाई है, यही कारण है कि मात्र कुछ हजार यात्री ही छह महीने में दर्शनों को पहुंच पाते हैं।

वर्षभर खुले रहते हैं कल्पेश्वर के कपाट

जनपद रुद्रप्रयाग में तीन केदार है, जिसमें केदारनाथ, द्वितीय केदार मद्दमहेश्वर व तृतीय केदार तुंगनाथ। जबकि रुद्रप्रयाग व कल्पेश्वर चमोली जनपद में पड़ते हैं, इसमें भगवान रुद्रप्रयाग के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो चुके हैं व कल्पेश्वर के कपाट पूरे वर्षभर खुले रहते हैं। आगामी 22 नवंबर को मद्दमहेश्वर भगवान के कपाट बंद होने हैं। इसके साथ ही सभी चारों केदार के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे।

शीतकाल में भगवान केदारनाथ समेत चारों केदार अपने शीतकालीन गद्दीस्थल में विराजमान हो जाते हैं। यही पर शीतकाल के छह महीनो तक नित पूजाएं होती है। यहां के दर्शन से भी वही महात्म्य होता है, जो ग्रीष्काल के दौरान उच्च हिमालय में विराजमान के बाद भक्तों का मिलता है। लेकिन इसके बावजूद सीमित संख्या में ही भक्त दर्शनों मको आते हैं।

पिछले साल शीतकाल में मात्र 78 हजार यात्रियों ने किए दर्शन

ओंकारेश्रर मंदिर ऊखीमठ में शीतकाल के दौरान पंचकेदारों के दर्शन एक साथ होते हैं। गत वर्ष की बात करें तो शीतकाल के दौरान मात्र 78 हजार यात्री दर्शनो को पहुंचे जबकि केदारनाथ के दर्शन करने वालों की संख्या ही 16 लाख थी। शीतकालीन यात्रा बढ्ने से स्थानीय स्तर पर भी रोजगार बढ़ता, जिसका फायदा सबसे अधिक स्थानीय युवाओं को मिलता।

मंदिर समिति व प्रदेश सरकार भी शीतकालीन यात्रा को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं दिखी। पूर्व में सरकार ने शीतकालीन यात्रा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास भी किए, पर इसका असर नजर नहीं आया। मात्र कुछ यात्री ही शीतकाल के दौरान दर्शनों को पहुंचते हैं। जबकि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय कहते हैं कि शीतकालीन यात्रा को विकसित करने के लिए गंभीरता से विचार किया जा रहा है। पूर्व में भी कई प्रयास किए गए, हालांकि इसमें विशेष सफलता हाथ नहीं लगी।

 

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