खबर रफ़्तार, उत्तकाशी: उत्तरकाशी के धराली गांव में आई आपदा ने न सिर्फ ज़मीनें छीनीं, बल्कि सपनों को भी मलबे में दफना दिया। होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार की आंखों में आंसू हैं, जब वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपनी जिंदगी की जमा-पूंजी से होम स्टे बनवाया था, और कैसे दो सेकंड की देरी उन्हें हमेशा के लिए मिटा सकती थी।
उत्तरकाशी धराली आपदा में अपना सब कुछ खो चुके होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार की आंखों में आंसू हैं। उन्होंने बताया कि किस तरह से अप्रैल में ही जीवन भर की कमाई लगाकर यहां एक होम स्टे स्थापित किया था। उस समय लगा था कि सपना पूरा हो गया है, लेकिन किसे पता था कि महज पांच महीनों में कुछ ही सेकंड में वह सब कुछ उनकी आंखों के सामने तबाह हो जाएगा। बताया कि सीटियों की आवाज सुनकर वह और उनके साथ मौजूद चार अन्य लोग तेजी से भागे, अगर दो सेकंड देर हो जाती तो मलबे में कहीं खो जाते।
हमें लगा अब सब खत्म हो गया
भूपेंद्र ने संवाद न्यूज एजेंसी से बातचीत में बताया, हम खीरगंगा के तेज बहाव के आदी थे, लेकिन इस बार जो भयानक रूप हमने देखा, वह तीन दिन बाद भी समझ से बाहर है। 5 अगस्त की दोपहर मैं गांव के अन्य लोगों के साथ होटल के बाहर खड़ा था। हम मेले में जाने की तैयारी कर रहे थे। तभी सामने मुखबा गांव से भागो-भागो की आवाजें और सीटियां सुनाई दीं।
यह सुनते ही हम पांच लोग तुरंत हर्षिल की ओर भागे और हमारे पीछे एक कार चालक भी अपनी जान बचाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा था। बस दो या तीन सेकंड का फर्क था वरना हम भी उस प्रलय में कहीं खो गए होते। इसके बाद मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को फोन किया और बताया कि मैं तो सुरक्षित हूं लेकिन सब कुछ खत्म हो गया। इसके बाद नेटवर्क भी चला गया।
लगा जैसे मैं अपने ही लोगों पर बोझ बन गया हूं
भूपेंद्र पंवार ने बताया कि सब कुछ खोने के बाद तीसरे दिन गांव के अन्य लोगों ने खाना दिया। मेरे कपड़े मलबे में दब गए थे, इसलिए पहनने के लिए टी-शर्ट और पजामा भी दूसरों से मांगना पड़ा। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही गांव के लोगों पर बोझ बन गया हूं। वहीं, उत्तरकाशी में मेरी पत्नी और बच्चे भी परेशान थे। मैं पैदल चलकर मुखबा पहुंचा और वहां से हेलिकॉप्टर के जरिये उत्तरकाशी आया।
भूपेंद्र ने भावुक होकर बताया कि उन्होंने पहले टैक्सी चलाकर पाई-पाई जोड़ी थी। उसी जमा-पूंजी से उन्होंने अप्रैल में चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले अपने सेब के बागानों के बीच एक दो-मंजिला होम स्टे बनाया था। यह उनका सपना था। उन्हें लगा था कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी लेकिन आपदा ने सब कुछ छीन लिया। उनकी आंखों के सामने ही उनकी जीवन भर की कमाई मलबे में दब गई।
रेस्क्यू ऑपरेशन जारी

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