चुनाव आयोग को सशक्त बनाने और महिलाओं को कोटा देने की सिफारिश

खबर रफ़्तार, नई दिल्ली: विशेषज्ञों के एक समूह ने संसदीय समिति को यह सुझाव दिया है कि राजनीतिक दलों के संगठन में महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए और दल के भीतर लोकतंत्र को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को ज्यादा अधिकार दिए जाने चाहिए। विशेषज्ञ ‘एक देश-एक चुनाव’ के विधेयकों की जांच कर रही समिति के सामने पेश हुए। इनमें भाजपा के पूर्व सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे भी शामिल थे। सहस्त्रबुद्धे लंबे समय से थिंक टैंक से जुड़े रहे हैं। सभी विशेषज्ञों ने इस विचार का पूरा समर्थन किया।

‘महिलाओं को आरक्षण दें राजनीतिक दल’
उन्होंने कहा कि इसे सभी ‘सुधारों की जननी’ कहा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही कई और लोकतांत्रिक सुधारों की भी जरूरत है। इसके लिए उन्होंने समिति के सामने ‘लोकतांत्रिक सुधारों के लिए सुझाव पत्र’ पेश किया। विशेषज्ञों ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अपने संगठन में महिलाओं को आरक्षण दें, ताकि लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण का पूरा लाभ मिल सके।
विशेषज्ञ समूह में कौन-कौन शामिल थे
इस समूह में विनय सहस्त्रबुद्धे के अलावा, मिरांडा हाउस के प्रशासनिक निकाय के प्रमुख जी. गोपाल रेड्डी, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की पूर्व उपकुलपति सुष्मा यादव, राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद की महासचिव शीला राय, गुवाहाटी विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर व दक्षिण-पूर्व एशिया केंद्र के निदेशक नानी गोपाल महंत भी शामिल थे।

‘संस्थाओं में महिलाओं को मिले 30 फीसदी आरक्षण’
इन विशेषज्ञों ने कहा कि पुरुष राजनेताओं को लैंगिक न्याय से जुड़े मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर क्षेत्र की निर्वाचित संस्थाओं (जैसे- सहकारी समितियां, हाउसिंग सोसायटी, प्रबंधन परिषद) में महिलाओं को कम से कम 30 फीसदी आरक्षण मिले।

विशेषज्ञ समूह ने चुनाव प्रचार से जुड़े सुधारों पर दिया जोर
समूह ने चुनाव प्रचार से जुड़े कुछ सुधारों पर भी बात की। उन्होंने कहा, हर राजनीतिक दल के लिए घोषणापत्र जारी करना अनिवार्य किया जाए और चुनाव के बाद उस पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी सार्वजनिक की जाए। हर उम्मीदवार को भी अपना व्यक्तिगत घोषणापत्र और चुनाव के बाद उस पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट देनी चाहिए। चुनाव प्रचार के खर्च को कम करने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि दूरदर्शन और निजी टेलीविजन चैनलों को यह अनिवार्य किया जाए कि वे हर राज्य के सभी प्रमुख दलों के नेताओं के प्रचार भाषण प्रसारित करें। प्रचार के लिए सार्वजनिक मैदानों को आरक्षित किया जाए और लॉटरी प्रणाली के जरिए दलों को बारी-बारी से मैदान दिए जाएं।

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