प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट पंचेश्वर बांध योजना का अब भी है इंतजार, अंतिम चरण पर है डीपीआर

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ख़बर रफ़्तार, अल्मोड़ा:  पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना नेपाल और भारत की सीमा पर महाकाली नदी पर विकसित की जाने वाली जलविद्युत परियोजना की डीपीआर अंतिम चरण पर है। यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पंचेश्वर बांध परियोजना में तेजी आई। इसके बाद कई डीपीआर तैयार की गई। नेपाल के विरोध और अनसुलझे सवालों से यह परियोजना धरातल पर नहीं उतर पाई।

वॉटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड ने डीपीआर तैयार कर ली है। उम्मीद है कि जल्द ही यह योजना शुरू हो सकती है। वर्ष 1996 में नेपाल और भारत के बीच हस्ताक्षरित एकीकृत महाकाली संधि के तहत होना है। करीब 40 हजार करोड़ लागत की 6480 मेगावाट की परियोजना के तहत भारत और नेपाल में महाकाली नदी के दोनों छोर बननी है। बांध बनने से ऊर्जा जरूरतें तो पूरी होगी ही वहीं रोजगार सृजन भी होगा। डूब क्षेत्र में आने वाले लोग विस्थापन की चिंता से परेशान है। पर्यावरणविद् पहाड़ में इतने बड़े बांध का विरोध कर रहे हैं।

11,600 हेक्टेयर में बनेगा जलाशय

मुख्य बांध के लगभग 27 किमी नीचे रूपालीगाड में एक विनियमन बांध प्रस्तावित है। काली नदी के दोनों किनारों पर 240 मेगावाट क्षमता वाले दो भूमिगत बिजलीघरों बनाए जाएंगे। मुख्य बांध लगभग 11,600 हेक्टेयर क्षेत्र का जलाशय बनाया जाएगा। एक लाख 30 हजार हेक्टेयर भूमि और भारत की दो लाख 40 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होगी। वहीं बाढ़ नियंत्रण पर कार्य होगा।

भूकंपीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र

उत्तराखंड का अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ़ जिला भूकंपीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यह जोन पांच में आता है। भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार बांध में 80 से 90 करोड़ घन लीटर पानी रोके जाने से अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। जिसका असर यहां के कमजोर पहाड़ पर दिखाई देगा।

डूब क्षेत्र में आने वाले गांव

प्रदेश के तीन जिलों में पिथौरागढ़, अल्मोड़ा व चम्पावत के करीब 130 गांव प्रभावित होंगे।
परियोजना के दायरे में 9100 हेक्टेयर भूमि प्रभावित होगी।
भारत का डूब क्षेत्र 7600 हेक्टेयर
प्रभावित कुल 31023 परिवारों में से 1308 परिवारों का घर-जमीन दोनों डूबेंगे
29715 परिवारों की जमीनें डूब क्षेत्र में आएंगी
नेपाल का डूब क्षेत्र 4 हजार हेक्टेयर
जंगलों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा

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