गंगा दशहरा के अवसर पर पूरे भारत में जश्न, पवित्र घाटों पर श्रद्धालुओं की उमड़ी आस्था की भीड़

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खबर रफ़्तार, पटना: कहा जाता है कि राजा सगर और उनके 60 हजार पुत्र ऋषि कपिला के श्राप के कारण मारे गए थे। सगर के महान पौत्र, भगीरथ अपने पूर्वजों के लिए एक समारोह आयोजित करना चाहते थे लेकिन पानी नहीं था। राजा भागीरथ की कठिन तपस्या के कारण ही पृथ्वी पर गंगा मैया का अवतरण संभव हो पाया था लेकिन पृथ्वी के अंदर गंगा के वेग को सहने की शक्ति न होने के कारण भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं के बीच स्थान दिया, जिससे एक धारा के रूप में पृथ्वी पर गंगा का जल उपलब्ध हो सके। गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में भगवान शिव का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

गंगा दशहरा के अवसर पर राजधानी पटना में देर रात से ही ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया, जो अभी तक जारी है। सुबह होते ही श्रद्धालु ‘हर-हर गंगे, जय गंगा मैया, हर-हर महादेव’ के जयकारे के साथ गंगा में डुबकी लगाने लगे। राजधानी पटना के विभिन्न घाटों पर आज तड़के से आस्था की डुबकी लगाने वालों का तांता लगा रहा। स्नान के बाद लोगों ने विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना की और दान किया। मंदिरों में भी अन्य दिनों की अपेक्षा पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।

गंगा दशहरा के अवसर पर दस दिन में गंगा किनारे मेला लगता है। श्रद्धालु गंगा की आरती करते हैं और गंगा स्नान करते है। मेले का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु इस पर्व में हिस्सा लेते हैं। हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज और ऋषिकेश प्रमुख शहर हैं जहां गंगा दशहरा पर्व के मेले का आयोजन किया जाता है। इसी दिन कई शहर मथुरा, वृन्दावन और बटेश्वर में यमुना नदी की भी आरती की जाती है और पतंगे भी उड़ाई जाती है। इस दिन लस्सी, शर्बत और शिकंजी का दान और प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है।

इसके अलावा तरबूज, खरबूज और सत्तू का दान और सेवन भी किया जाता है। हरिद्वार और वाराणसी जैसे शहरों में तो यह त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर दीये गंगा नदी में बहाये जाते हैं और गंगा महा आरती का आयोजन किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने स्कन्द पुराण के हवाले से बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को संवत्सरमुखी की संज्ञा दी गई है। इसमें स्नान और दान बहुत ही पुण्यप्रद माना गया है।

स्मृति ग्रंथ के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान एवं दान करने से दस महापातकों (तीन कायिक, चार वाचिक एवं तीन मानसिक) के बराबर के पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन उत्तरफाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र का युग्म संयोग, सिद्ध योग एवं रवियोग का पुण्यकारी संयोग बन रहा है I विष्य पुराण के मुताबिक गंगा दशहरा के दिन स्नान, पूजा के बाद ॐ नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमःका दस बार जप करने से कर्ज तथा कलंक के दोष से मुक्ति एवं अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

ज्योतिषी झा ने वराह एवं शिव पुराण का हवाला देते हुए बताया कि गंगा दशहरा के दिन सत्तू, पंखा, ऋतुफल, सुपाड़ी, गुड़, जल युक्त घड़ा के दान से आरोग्यता, समृद्धि और वंश वृद्धि का वरदान मिलता है। इस दिन स्नान के बाद दस दीपों की दान करने से पितरो को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा ध्यान व स्नान से काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्ति होती है।

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