जोशीमठ का न हो विस्थापन,सर्वे कर लौटी तीन संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम की रिपोर्ट

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श्रीनगर : भूधंसाव की मार झेल रहे जोशीमठ का पूर्ण रूप से विस्थापन उचित नहीं है बल्कि सुरक्षित और कम खतरे वाले स्थानों का ट्रीटमेंट किया जाना चाहिए। यह मानना है कि जोशीमठ का दौरा कर लौटी टीम का। हालांकि टीम अभी किसी भी नतीजे में पहुंचने से पूर्व जोशीमठ का दोबारा सर्वेक्षण करेगी।

तीन संस्थानों की टीम के सदस्य एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के भूगोल विभाग के प्रो. मोहन सिंह पंवार, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के उप महानिदेशक डॉ. सैंथियल और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. तेजवीर राणा व प्रो. सीवी रमन जोशीमठ शहर में भूधंसाव का वैज्ञानिक और सामाजिक आधार तलाश करने गए थे।

प्रो. पंवार ने बताया कि सर्वेक्षण की दृष्टि से जोशीमठ शहर को पांच जोन में विभाजित किया गया है। इसमेें उच्च प्रभावित, मध्यम प्रभावित, निम्न प्रभावित, सुरक्षित और वाह्य क्षेत्र शामिल हैं। इसी के मुताबिक टीम रिपोर्ट तैयार कर रही है। सरकार को यह सुझाव दिए जाएंगे कि जो सुरक्षित, निम्न प्रभावित व मध्यम प्रभावित क्षेत्र हैं। उन्होंने कहा कि यह भी देखा गया है कि निर्माण कार्य के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन नहीं किया गया है। भविष्य में इसका पालन करवाने का सुझाव दिया रहा है।

 

इतना पानी निकलेगा तो भू-धंसाव की समस्या सामने आएगी
भवनों के सीवर और पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है। यह नगर पालिका के दायित्व थे जो पूरे नहीं किए गए। अनुमान के मुताबिक यह प्रत्येक घर से लगभग 200 लीटर पानी निकलता है। यदि लगभग एक हजार घरों से प्रत्येक दिन इतना पानी निकलेगा तो भू-धंसाव की समस्या सामने आएगी। इसके अलावा पहाड़ में किसी भी सुरंग या सड़क निर्माण से पूर्व गंभीर अध्ययन होना चाहिए। इसमें स्थानीय लोगों और स्थानीय संस्थानों के अनुभव और राय जरूरी ली चाहिए।

50 सालों में आए बदलाव का हो रहा अध्ययन
श्रीनगर टीम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देख रही है कि पिछले 50 सालों में जोशीमठ शहर मेें क्या और किस प्रकार बदलाव आया है। इस दौरान हुए भू-धंसाव, भूस्खलन सहित अन्य घटनाओं का विश्लेषण किया जाएगा जबकि सामाजिक सर्वेक्षण में निर्माण कार्यों का अध्ययन किया जा रहा है। यह भी देखा जा रहा है कि इस समयावधि में भवनों की कितनी संख्या बढ़ी है।

सेटेलाइट चित्रों का करेंगे धरातल पर सत्यापन
जोशीमठ में भू-धंसाव के लिए जिम्मेदार कारकों को ढूंढने के लिए रिमोट सेसिंग से उपलब्ध सेटेलाइट चित्रों का विश्लेषण किया जा रहा है। प्रो. पंवार ने बताया कि सेटेलाइट से उपलब्ध चित्रों का मौके पर जाकर सत्यापन किया जाएगा। इसके बाद पूरी रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी जाएगी।

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