ख़बर रफ़्तार ,नई दिल्ली: अमेरिका के वैश्वीकरण से वापस राष्ट्रीयता की तरफ आकर्षित होना, चीन के उत्कर्ष, ब्रेक्जिट के कारण यूरोपीय संघ पर संकट, वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर बड़े परिवर्तन के साथ ही रूस, तुर्किए (पहले तुर्की) एवं ईरान के द्वारा अपने गौरवशाली अतीत की वापसी के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के साथ तेजी से परिवर्तनशील विश्व में तकनीकी, संचार एवं व्यापार ने विश्व की महाशक्तियों एवं छोटे देशों की नीतियों के निर्धारण में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है।
संयुक्त राष्ट्र एवं विश्व व्यापार संगठन इस बदलते परिदृश्य में धीरे-धीरे अप्रासंगिक भी सिद्ध हो रहे हैं। ऐसे में विविध देशों की नीतियों को समझते हुए, चीन आदि देशों से प्रतिस्पर्धा करते हुए भारत द्वारा अपने हितों को साधना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है। तेजी से बदलते इस वैश्विक परिदृश्य में भारत के साझेदारों एवं संबंधों का तेजी से बदलना भी सर्वथा प्रासंगिक है। साथ ही हर मुद्दे पर देश के हितों की रक्षा को सुनिश्चित किया जा सके, यह भी संभव नहीं है।
लिहाजा बदलते वैश्विक परिदृश्य में तेजी से निर्णय लेने वाली कूटनीति ही सफल मानी जाएगी। वर्ष 2014 के बाद भारत की विदेश नीति में जो कायाकल्प हुआ, उसमें एक क्रांतिकारी परिवर्तन डा. एस. जयशंकर के साथ आया है। वर्तमान भारतीय विदेश नीति अपने उच्चतम सामर्थ्य, तीव्र महत्वाकांक्षाओं एवं जिम्मेदारी की श्रेष्ठ भावनाओं के साथ विश्व मंच पर डटी हुई है। भारत आज गुटनिरपेक्षता जैसे अप्रासंगिक हो चुकी नीति से आगे बढ़ते हुए बड़ी एवं मध्यम शक्तियों के साथ अभूतपूर्व साझेदारी कर रहा है।
वर्तमान भारतीय विदेश नीति शक्तिसंपन्न देशों को खुश करने के बजाय उनसे साझेदारी एवं बराबरी की बात करती नजर आ रही है। ब्रिक्स, क्वाड, आइटूयूटू जैसे संगठनों में भारत की सक्रियता उसे एक ऐसा कूटनीतिक मिलन बिंदु बनाती है, जहां से विश्व कल्याण की नीतियों को प्रश्रय मिल सकता है। भारत अपनी विदेश नीति के साथ ही अपने वादों, इरादों पर खरा उतर रहा है। इस नए दौर में भारत ने चीन को सीधा संदेश दे दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर वह चीन के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा। वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में भारत की वास्तविक वैश्विक शक्ति एवं महत्व को पूरी दुनिया रेखांकित कर रही है।
भारत विश्व का एक अकेला ऐसा देश है जिसे इस विवाद में सभी पक्षों द्वारा लामबंद करने का प्रयास किया गया। रूस-यूक्रेन युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत विश्व में एकमात्र वैश्विक स्वर बनकर उभरा है एवं उसके हितों व आवाज को दबाया नहीं जा सकता है। भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को कायम रखते हुए रूस तथा पश्चिम के बीच एक समन्वय स्थापित करते हुए अपने हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर यह संदेश दिया है कि भारत की विदेश नीति के लिए अब उसके अपने हित सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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