
ख़बर रफ़्तार, नैनीताल: हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया है। निर्णय में एकलपीठ ने कहा है कि किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निर्धारित होती है, ना कि वैवाहिक स्थिति से।
सरकारी अधिवक्ता की ओर से ने तर्क दिया कि महिला के पति उत्तर प्रदेश के निवासी हैं, इसलिए महिला को ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करना संभव नहीं है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करने के लिए जो आधार अपनाया गया है, वह कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है। कोर्ट ने निर्णय में कहा है कि इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह से जाति नहीं बदली जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सुनीता सिंह बनाम यूपी राज्य के मामले में यह निर्णय दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा था कि व्यक्ति की जाति की स्थिति उसके जन्म से निर्धारित होती है, ना कि विवाह से। विवाह से किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदलती। नैनीताल हाई कोर्ट की एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार करते हुए तहसीलदार भगवानपुर का का 21 मार्च का जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन निरस्त करने का आदेश रद कर दिया। साथ ही तहसीलदार को आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तारीख से आठ सप्ताह के भीतर, कानून के अनुसार याचिकाकर्ता महिला के जाति प्रमाण पत्र जारी करने के दावे की जांच करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि ओबीसी प्रमाणपत्र देने से इनकार करने के लिए विपक्षियों की ओर से अपनाया गया रुख टिकाऊ नहीं है।
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