प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड: समय पूर्व रिहाई की याचिका खारिज करने का फैसला रद्द; सजा बोर्ड फिर से विचार करे

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खबर रफ़्तार, नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को सजा समीक्षा बोर्ड के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें दोषी संतोष कुमार सिंह की समयपूर्व रिहाई की याचिका खारिज कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि दोषी में सुधार की गुंजाइश है, सजा बोर्ड समयपूर्व रिहाई याचिका पर नए सिरे से विचार करे।

प्रियदर्शिनी मट्टू मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दोषी की समयपूर्व रिहाई की याचिका खारिज करने का फैसला रद्द किया। साथ ही कोर्ट ने सजा बोर्ड से फिर से विचार करने को कहा है। संतोष कुमार सिंह 1996 में कानून की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू से दुष्कर्म और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। जस्टिस संजीव नरूला ने 14 मई को सिंह की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा था।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि सिंह में सुधार की भावना है और उन्होंने दोषी की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के पास वापस भेज दिया। न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मुझे उसमें सुधार की भावना मिली है। एसआरबी के फैसले को खारिज किया जाता है और मैंने मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए एसआरबी के पास वापस भेज दिया है।

न्यायालय ने कैदियों की याचिकाओं पर विचार करते समय एसआरबी द्वारा पालन किए जाने वाले कुछ दिशा-निर्देश भी तैयार किए हैं। न्यायालय ने कहा कि एसआरबी को दोषियों की याचिकाओं पर विचार करते समय उनका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करना चाहिए, जो इस मामले में नहीं किया गया।

माथुर ने कहा था कि उनके मुवक्किल का आचरण संतोषजनक रहा है, जो उनके सुधार का संकेत देता है और भविष्य में अपराध करने की उनकी संभावना पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि सिंह कई वर्षों से ओपन जेल में हैं और समाज के लिए एक उपयोगी सदस्य बन सकते हैं। अदालत के संज्ञान में यह भी आया कि 18 सितंबर, 2024 को हुई एक अन्य एसआरबी बैठक में सिंह के मामले को फिर से समय पूर्व रिहाई के लिए खारिज कर दिया गया।

जानें क्या है प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड मामला
25 वर्षीय प्रियदर्शिनी मट्टू का जनवरी 1996 में बलात्कार और हत्या कर दी गई थी। संतोष कुमार सिंह, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के छात्र थे, को 3 दिसंबर, 1999 को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 27 अक्टूबर, 2006 को इस फैसले को पलटते हुए उन्हें बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया और मृत्युदंड की सजा सुनाई। संतोष कुमार सिंह, जो एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का बेटा है, ने इस सजा को चुनौती दी थी। अक्टूबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास से बदल दिया था।

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