ख़बर रफ़्तार, हरिद्वार. चातुर्मास हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. आमतौर पर वर्षा ऋतु के 4 महीनों को ही चातुर्मास कहते हैं लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास में भगवान विष्णु श्यन मुद्रा में चले जाते हैं. चातुर्मास में पूरे ब्रह्मांड का कार्यभार और संचालन भगवान भोलेनाथ करते हैं. कहा जाता है कि इस दौरान शादी विवाह, सगाई, मुंडन, आदि मांगलिक कार्य करना वर्जित होता हैं. चातुर्मास में आने वाली देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक शुभ कार्य इसलिए वर्जित होते हैं. चातुर्मास में भगवान शिव के निमित्त पूजा पाठ करने और व्रत आदि करने का विशेष महत्व बताया गया हैं.
हरिद्वार के प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि चातुर्मास हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता हैं. चातुर्मास भगवान भोलेनाथ को पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं जिनमें भगवान भोलेनाथ की पूजा और उनके निमित्त व्रत आदि करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह से चातुर्मास शुरू हो जाता है जिसमें भगवान शिव की भक्ति करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ रुके हुए कार्य भी पूरे हो जाते हैं.
चातुर्मास में क्यों नहीं होते मांगलिक कार्य
पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि चातुर्मास में देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करते हैं साथ ही सभी देवी देवता भी आराम करने के लिए चले जाते हैं. भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक विश्राम करते हैं जिनके साथ सभी देवी देवता भी अपने-अपने स्थान पर जाकर विश्राम करते हैं, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी कारण हिंदू धर्म में चातुर्मास में मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है.
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