अहंकारी रावण ने भगवान शिव को यहां समर्पित किए थे अपने नौ शीश, आज भी मौजूद हैं दशानन से जुड़ीं खास निशानियां

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  खबर रफ़्तार,देहरादून: बुधवार पांच अक्‍टूबर को बुराई पर अच्‍छाई की विजय का प्रतीक का पर्व देशभर में मनाया जाएगा। इसे लेकर उत्‍तराखंड में भी उल्‍लास का माहौल है लेकिन पौराणिक मान्‍यताओं की मानें तो देवभूमि के पहाड़ों में ही दशानन रावण ने भगवान शिव को नौ शीश समर्पित किए थे। ये बात शायद बेहद कम लोगों को पता है कि रावण ने उत्‍तराखंड में ही 10 हजार साल तक तपस्‍या कर भगवान शिव को प्रसन्‍न किया था। कहां जाता है कि यहां रावण से जुड़ी निशानियां आज भी मौजूद है

10 हजार सालों तक तप कर अपने नौ सिरों की दी थी आहुति

  • मान्‍यताओं के अनुसार जिस स्‍थान पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए तप किया था वह स्‍थान उत्तराखंड के गोपेश्वर में दशोली गढ़ में है।
  • स्कंद पुराण में भी केदार खंड में भी दसमोलेश्वर के नाम से वैरासकुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है।
  • कहा जाता है कि दशोली गढ़ में वैरासकुंड में रावण ने तप किया था और यहीं पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप 10 हजार सालों तक तप कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।
  • वैरासकुंड में जिस स्थान पर रावण ने तपस्या की थी वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां मौजूद है।
  • स्‍थानीय लोगों का कहना है कि यहां रावण की तपस्‍या से जुड़ी कई पौराणिक और पुरातत्व महत्व की चीजें आज भी मौजूद हैं।
  • उनका कहना है कि कुछ समय पहले यहां एक खेत में खुदाई की गई थी। जहां से एक और कुंड मिला था। उनका है कि जब भी यहां आस-पास के क्षेत्रों में खुदाई की जाती है तो प्राचीन पत्थर निकलते हैं।
  • यहां आज भी रावण शिला और यज्ञ कुंड है। इस स्‍थान पर भगवान शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है। शिव मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग भी है।
  • स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार यहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए तपस्‍या के दौरान अपने नौ सिर यज्ञ कुंड को समर्पित कर दिए थे।
  • जैसे ही वह अपने 10वें सिर की आहूति देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्‍न होकर रावण को मनवांछित वरदान दिया।
  • दस दौरान रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वरदान मांगा था। तब से इसे भगवान शिव का स्‍थान माना जाता है।

    दशानन के नाम से पड़ा दशोली

    बैरासकुंड के पास रावण शिला है। जहां रावण की भी पूजा की जाती है। स्‍थानीय लोगों के मुताबिक दशोली शब्द रावण के 10वें सिर का अपभ्रंश है। इसी के नाम पर क्षेत्र का नाम दशोली पड़ा है। इसके साथ ही दशहरे पर यहां रावण के पुतले का दहन नहीं किेया जाता है।

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