भगवानपुर के कोलड़िया ग्राम में हंगामा व धक्का-मुक्की के बाद सभी 46 अवैध निर्माण ध्वस्त, 15 लोगों ने दी आत्महत्या की चेतावनी

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ख़बर रफ़्तार, रुद्रपुर: अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत काशीपुर रोड पर भगवानपुर के कोलड़िया ग्राम में कुल 46 पक्के निर्माण ध्वस्त किए गए। हंगामे के बीच कार्रवाई को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था। गुरुवार को 18 निर्माण ध्वस्त किए गए थे। लोनिवि और पुलिस प्रशासन की टीम ने शेष शनिवार सुबह ध्वस्त किए। इस दौरान हल्की नोकझोंक का भी सामना करना पड़ा।

लोक निर्माण विभाग का दावा है कि भगवानपुर के कोलड़िया स्थित हाईवे किनारे भूमि उनकी हद में है। ऐसे में 70 वर्षों से रह रहे लोगों को वहां से हटाने का प्रयास कभी नहीं किया, लेकिन अब हाई कोर्ट का आदेश आते ही विभाग सक्रियता दिखा रहा। बता दें कि बुधवार को पुलिस कार्रवाई के लिए लाव लश्कर लेकर पहुंची थी, लेकिन किसी कारण से कार्रवाई गुरुवार को शुरू हुई।

खूब हंगामे, धक्का-मुक्की और बवाल के बाद एक दर्जन से अधिक मकानों को ध्वस्त कर दिया गया। हंगामे को देखते हुए और लोगों की मांग पर जिला प्रशासन ने उन्हें 24 घंटे का समय अपना सामान खुद हटाने के लिए दिया था। शनिवार सुबह ही भारी पुलिस बल के साथ टीम कुलड़िया पहुंच गई। एक के बाद एक करके सारे पक्के निर्माण जिन्हें कोर्ट ने तोड़ने के आदेश दिए थे, तोड़ दिया गया। लोनिवि के अधिकारियों ने बताया कि हाईवे के मध्य से 28 से 42 मीटर तक नाप लेने के बाद अंदर आ रहे निर्माण को तोड़ा गया।

एक ही परिवार के 15 लोगों ने दी आत्महत्या की चेतावनी

अतिक्रमण हटाने के दौरान भीमराव पुत्र रमेश परिवार संग खूब रोया और कहा कि उसके 40 हजार ईंट भी प्रशासन ने जब्त कर लिए। परिवार में 15 सदस्य हैं, जिनका खर्च वह रिक्शा चलाकर उठाता है। ऐसे में घर टूटने के बाद उसने कहा कि उनके पास एक ही चारा है कि वह परिवार समेट जहर खाकर आत्महत्या कर ले।

काफी देर तक पुलिस समझाती रही, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था। कई ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने अपना मकान खाली नहीं किया था। उन्हें भी कोई रियायत नहीं दी गई। चार बुलडोजर ने सारे चिन्हित अतिक्रमण ढहा दिए। दो बजे तक टीम ने अतिक्रमण तोड़ दिए और शाम तक मलबा हटाने की कार्रवाई चलती रही। इस मौके पर एसडीएम मनीष बिष्ट, कौस्तुभ मिश्रा आदि मौजूद रहे।

दर्द के आंसू छलकते रहे, कोई नहीं पहुंचा पोंछने वाला

जैसे पक्षी एक-एक तिनका लाकर घोसला बनाता है उसी तरह एक-एक पाई जुटाकर बनाए गए गरीबों के घरोंदों पर लोडर गरजा तो आशियाने ढहने के दर्द में पीड़ितों के आंसू छलकते रहे। महिलाओं के रोने-धोने से वहां का माहौल दिल को दुखाने वाला हो गया। इन महिलाओं का कहना था कि अब उन्हें खुले आसमान के नीचे रातें गुजारनी पड़ेंगी। खून पसीने की कमाई से बने उनके आशियाने क्षण भर में ढहा दिए गए हैं।

सरकार, अफसरों व नेताओं को कोसते हुए प्रभावित लोग बोले कि दुख की इस घड़ी में कोई साथ नहीं दिख रहा है, जब वोट लेने होते हैं तो नेता पैर पकड़कर ऐसे गिड़गिड़ाते हैं मानो वे ही उनके सच्ची हितैषी हों, लेकिन आज सब नदारद हैं। ग्राम कोलड़िया में लोक निर्माण विभाग की जमीन पर बने कई दर्जन आवासों को हाई कोर्ट के आदेश पर शुक्रवार को स्थानीय प्रशासन ने ढहाना शुरू किया तो वहां रहने वाले परिवारों में हड़कंप मच उठा।

लोग तुरंत अपने-अपने घरेलू सामान को बचाने में जुट गए। जिससे जितना बना वह उतना सामान लेकर पास में ही स्थित छठ घाट पर रखने लगा। कई प्रभावितों ने फिलहाल इसी जगह को अपना ठिकाना बना लिया है। छठ घाट पर तखत लगाकर गुम बैठी बीना अब तक यह नहीं समझ पा रही है कि यह सब क्या हो रहा है। उसे यह चिंता सता रही है कि खुद और बच्चों की जिंदगी अब कैसे चलेगी।

इसी बीच एक महिला ने ठेले से रोटी लाकर अपने स्वजन को खाने के लिए देने लगी तो घर उजड़ने से दुखी स्वजन ने खाने से मना कर दिया। बहुत कुरदने पर एक-दूसरे से लिपट-लिपट कर रोती-धोती महिलाओं ने कहा कि सरकार कहती है कि गरीबों को नहीं उजाड़ा जाएगा, यहां तो 70 साल रहने के बाद उन्हें उजाड़ दिया गया है। इसी दौरान प्रभावित सुरेश व कुछ अन्य लोगों ने बताया कि घर के पुरुषों की अनुपस्थिति में कई महिलाओं से कागज पर यह कहकर हस्ताक्षर करवाए गए हैं कि उन्हें दूसरी जगह आवास मिलेगा।

इस लालच में कई लोगों ने हस्ताक्षर कर दिए थे। जब उन्हें धोखा होने का शक हुआ तो केस दर्ज करने की तैयारी की जानी लगी। इस पर कुछ लोगों ने केस न करने का अनुरोध किया। उन्हें क्या पता था कि यह सब उनके साथ धोखेबाजी की गई है। मौके पर मिले कई पीड़ितों का कहना था कि अब तो उनका सब कुछ खत्म हो गया और गृहस्थी बिखर गई है। अब खुला आसमान ही उनका घर है और खानाबदोश की तरह जिंदगी हो गई। बोले- गलती सरकारी अफसर करें और खामियाजा गरीब लोग भुगतें।

जब सब कुछ गलत था तो उनके नाम पर पट्टे क्यों दिए गए। यदि पट्टा नहीं दिया गया होता तो वह कहीं और मकान बना लेते। अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मासूम बच्चों व बुजुर्गों को छोड़ कर काम करने कैसे जाएंगे। अभी बारिश हो जाएगी तो कहां जाएंगे। उनका यह भी कहना था कि यहां हटाने से पहले प्रधानमंत्री आवास योजना या किसी अन्य योजना के तहत प्रभावित लोगों के आवास की व्यवस्था की जानी चाहिए थी।

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