ख़बर रफ़्तार, अल्मोड़ा: पलायन रोकने के दावे तो खूब हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ों के खाली और जनशून्य होते गांव, बंजर खेत और वीरान होती बाखलियां सिस्टम की उदासीनता और अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है राज्य गठन के बाद अल्मोड़ा संसदीय सीट पर चारों जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत में 269 गांव पूरी तरह से जनशून्य हो चुके हैं। कभी ये गांव महिलाओं, बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों की चहलकदी से गुलजार रहते थे जो अब वीरान हो चुके हैं।
लॉकडाउन में हुआ रिवर्स पलायन, नहीं बदले हालात
पलायन पूरे प्रदेश के लिए नासूर बन गया है। खासकर पहाड़ी जिलों से खूब पलायन हुआ। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अभाव में इन गांवों पर पलायन की मार पड़ी। कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन के बाद युवाओं ने अपने गांवों की तरफ रुख किया। अपने मूल स्थान पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उन्हें अपनी आजीविका कमाने के लिए फिर से घर छोड़ना पड़ा और पलायन रोकने के दावे धराशाई हो गए।

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