ख़बर रफ़्तार, देहरादून: टिहरी लोकसभा सीट पर राजशाही का तिलिस्म नहीं टूट पा रहा है। उम्मीदवारी को लेकर सबसे अधिक शंकाओं में घिरी इस सीट पर भाजपा ने राजशाही परिवार में भरोसा जताया और माला राज्यलक्ष्मी शाह को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया।
उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने से बेशक पार्टी के भीतर एक वर्ग अचंभे में हो सकता है, लेकिन चुनावी गणित के चश्मे से केंद्रीय नेतृत्व को राजशाही परिवार की प्रतिनिधि को प्रत्याशी बनाना सबसे बेहतर विकल्प लगा। शाही परिवार से होने की वजह से माला राज्यलक्ष्मी शाह का अंदाज बाकी लोकसभा सांसदों की तुलना में जुदा रहा है।
जनता के बीच उनसे ज्यादा सक्रिय रहने की अपेक्षा होती रही हैं। उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी के बाहर और भीतर चर्चाएं भी होती रही हैं। इन्हीं कारणों से भाजपा के हलकों में यह चर्चा खासी गर्म रही कि पार्टी नेतृत्व इस बार के लोस चुनाव में उन पर दांव लगाने से पहले कई बार सोचेगा, लेकिन माला राज्यलक्ष्मी शाह का दूसरा पक्ष राजशाही परिवार का तिलिस्म है, जिसके प्रभाव में भाजपा 1991 से लेकर अब तक रही है।
इसका अंदाजा इस तथ्य लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता के बाद अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में 11 बार राजशाही परिवार का कब्जा रहा। 1952 में पहली बार में इस सीट पर राज परिवार की कमलेंदुमति शाह निर्दलीय चुनाव जीती थीं। उनके बाद कांग्रेस से मानवेंद्र शाह ने 1957, 1962 और 1967 के लोकसभा चुनावों में विजयी रहे।
1991 से 2004 तक हुए पांच आम चुनावों में मानवेंद्र शाह भाजपा से लगातार चुनाव जीते। इस सीट पर आठ बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी राजशाही परिवार के मानवेंद्र शाह के नाम है। 2012 में टिहरी लोस सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार माला राज्यलक्ष्मी भाजपा से उम्मीदवार बनाई गईं और निर्वाचित हुईं।
इसके बाद पार्टी ने उन्हें 2014 और फिर 2019 में उम्मीदवार बनाया। दोनों चुनाव में वह विजयी रहीं। टिहरी संसदीय क्षेत्र में राज परिवार के दबदबे को देखते हुए पार्टी ने एक बार फिर माला राज्यलक्ष्मी शाह पर भरोसा जताया।
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