ख़बर रफ़्तार, देहरादून: मेडिकल स्टोरों पर नशे की दवाओं को लाल, नीली और पीली गोली के नाम से खुलेआम बेचा जा रहा है। इनमें नारकोटिक दवाएं शामिल होती हैं। यही नहीं, कुछ मेडिकल स्टोरों पर इन दवाओं के लिए पर्चा भी नहीं मांगा जा रहा है। इस वजह से शहर में नशे की दवाओं का सेवन बढ़ता जा रहा है।
अवैध दवाएं मिलने के मामले लगातार आ रहे सामने
मेडिकल स्टोर पर ना बायोमेट्रिक मशीनें लगने का काम शुरू हुआ है और ना ही गूगल फॉर्म से डाटा अपलोड किया जा रहा है। जिले में प्रतिबंधित दवाएं मिलने के बाद औषधि विभाग ने इस संबंध में निर्देश जारी किया था लेकिन अभी प्रक्रिया शुरू भी नहीं हो पाई है। शहर में नशीली दवाओं और अवैध दवाएं मिलने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। लेकिन औषधि विभाग की ओर से नियमित तौर पर मेडिकल स्टोर की जांच ही नहीं की जाती है।
मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट मौजूद है या फिर दुकानदार ही दवाई दे रहा है कुछ जानकारी नहीं रहती है। मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट के नाम पर मेडिकल स्टोर का लाइसेंस ले लेते हैं लेकिन हकीकत तो ये है कि वहां पर फार्मासिस्ट दवाएं नहीं देता है। दवाई देने के लिए निजी कर्मचारी रख लेते हैं और फार्मासिस्ट अन्य जगह पर नौकरी करता है। ऐसे में उसका बिजनेस और नौकरी चलती रहती है।
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मौजूदगी अनिवार्य करने के लिए मशीन लगानी थी
औषधि विभाग की ओर से यह कहा गया था जिस तरह से एक ऑफिस में कर्मचारी की अटेंडेंस लगती है उसी तरह से मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट की अटेंडेंस भी लगेगी। ऐसे में बिना फार्मासिस्ट के मेडिकल स्टोर पर दवाई नहीं दी जा सकेगी और फार्मासिस्ट की मौजूदगी अनिवार्य होगी और इसकी जानकारी डाक विभाग को भी मिलती रहेगी। हालांकि अब तक यह योजना ठंडे बस्ते में है।
बायोमेट्रिक मशीन लगाने और गूगल फॉर्म पर डाटा अपलोड करने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। उच्च अधिकारियों से इस संबंध में बात की जाएगी, ताकि किसी भी मरीज को बिना पर्चे के दवाएं न दी जाएं। – मानेंद्र सिंह राणा, ड्रग इंस्पेक्टर, देहरादून
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