ऊधमसिंहनगर, देहरादून और पिथौरागढ़ कोऑपरेटिव बैंक बोर्ड व अफसरों पर गिर सकती है गाज

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  • भर्ती घोटाले की परतें उठने के बाद सरकार सख्त कार्रवाई के मूड में
  • बैंक के चेयरमैन, संबंधित जिले के आर कोऑपरेटिव और जीएम कार्रवाई के दायरे में

रुद्रपुर : ऊधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ और देहरादून जिला सहकारी बैंक में हुए भर्ती घोटाले की गाज इन बैंकों के बोर्ड व कई अफसरों पर गिर सकती है। घपले में गड़बड़ी की पुष्टि के बाद शासन अब कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। इस कार्रवाई की जद में सहकारिता विभाग और बैंकों के अफसरो के साथ ही बैंकों के बोर्ड पर भी रडार पर हैं।

आपको बता दें कि ऊधमसिंह नगर देहरादून और पिथौरागढ़ डिस्टिक कोऑपरेटिव बैंक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पदों पर बड़ा भर्ती घोटाला हुआ है। घोटाला धामी 2 सरकार से पहले ऐसे समय में हुआ जबकि आचार संहिता लगी हुई थी और अफसरों की मनमानी चल रही थी। अधिकारियों और बैंकों के बोर्ड ने मनमानी करते हुए भर्ती के सारे नियम ही बदल डाले, और खेल प्रमाण पत्रों के साथ ही अनुभव प्रमाण पत्रों में भी बड़ा घालमेल किया। अपात्रों का चयन कर पात्रों को दरकिनार कर दिया गया।

शिकायतों के बाद दोबारा सहकारिता मंत्री बने धन सिंह रावत के निर्देश के बाद इस मामले में जांच हुई और दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। जांच रिपोर्ट से ये साफ हो गया है कि बैंकों के स्तर पर गठित इंटरव्यू बोर्ड ने अभ्यर्थियों को नंबर देने में मनमानी की। इंटरव्यू बोर्ड में बैंक अध्यक्ष, सहायक निबंधक व बैंक महाप्रबंधक शामिल रहे। इन तीनों के स्तर से ही नंबर दिए गए। ऐसे में यदि कार्रवाई होती है, तो बोर्ड के इन सभी सदस्यों के ऊपर खतरा पैदा हो सकता है, जिसकी पूरी संभावना नजर आ रही है।

पूर्व में हरिद्वार जिला सहकारी बैंक भर्ती घपले में महाप्रबंधक, सहायक निबंधक के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है। इसके साथ ही तीनों बैंकों के बोर्ड को भंग करने का भी सख्त फैसला लिए जाने की संभावना जताई जा रही है। इसे लेकर भी विधिक राय जुटाई जा रही है। ताकि बाद में कोई कानूनी अड़चन न आए। शासन स्तर पर की जा रही इस तैयारी को लेकर बैंक प्रबंधन के पसीने छूट रहे हैं।

  • बैंक अध्यक्षों पर लिया जा सकता है सख्त फैसला

जिन बैंकों में गड़बड़ी की पुष्टि हुई है, उनके अध्यक्षों पर भी संकट मंडरा गया है। हरिद्वार डीसीबी के पूर्व अध्यक्ष की तरह न सिर्फ उन्हें हटाया जा सकता है, बल्कि कुछ सालों के लिए सहकारिता से जुड़े चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है। ऐसा हुआ, तो कई अध्यक्षों का राजनीतिक भविष्य संकट में आ जाएगा। इन बैंकों का कार्यकाल भी अब बामुश्किल एक साल ही बचा है।

  • आचार संहिता में फाइलें दौड़ाने वाले रडार पर

भर्ती घपले में आचार संहिता के बीच फाइलें दौड़ाने वाले अफसर भी शासन के निशाने पर हैं। कैसे आचार संहिता के बीच भर्ती को अनुमोदन दिया गया। नई सरकार के गठन और मंत्रालय ‘आवंटन से पहले ही रातों रात आनन फानन में न सिर्फ मंजूरी दी गई, बल्कि ज्वाइन भी करा दिया गया। कई बैंकों ने तो 29 मार्च को सहकारिता मंत्री के ज्वाइन न कराने के आदेश के बावजूद बैक डेट में ही ज्वाइनिंग करा दी।

इस संबंध में सचिव सहकारिता बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने कहा कि जांच रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। उसके सभी पहलुओं का परीक्षण होगा।

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