
खबर रफ्तार,देहरादून: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सीमांत क्षेत्र में स्थित गांवों तक संगठन को मजबूत करने आह्वान किया है, उत्तराखंड के दृष्टिकोण से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य की पांच में से चार लोकसभा सीटों की सीमा चीन या नेपाल से लगी है, जबकि कुल 13 में से पांच जिले अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में इसका राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक, आर्थिक और सामरिक महत्व भी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब दीपावली पर उत्तराखंड आए थे तो उन्होंने बदरीनाथ धाम में दर्शन के उपरांत चीन सीमा पर स्थित अंतिम गांव माणा में जनसभा को भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने तब माणा को अंतिम गांव के बजाय प्रथम गांव का विशेषण दिया और कहा कि देश की सीमा पर बसा प्रत्येक गांव प्रथम गांव है। उन्होंने ऐसे गांवों के विकास को प्राथमिकता में शामिल करते हुए इनके महत्व को रेखांकित किया। इसके बाद ही प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने निर्णय लिया कि ऐसे गांवों में अब कैबिनेट बैठकों का आयोजन भी किया जाएगा।
दरअसल, उत्तराखंड की 675 किमी लंबी सीमा दो देशों चीन व नेपाल से लगती है। राज्य के चंपावत, चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी व ऊधमसिंह नगर जिलों के गांव इस सीमा से सटे हैं। ये पांच जिले हरिद्वार को छोड़ लोकसभा की शेष चार सीटों में विभक्त हैं।
सीमांत गांवों के निवासी एक तरह से सीमा प्रहरी की भूमिका में रहते हैं। सीमा पर किसी भी तरह की गतिविधि की सूचना सबसे पहले इन्हीं के माध्यम से प्राप्त होती है। ऐसे में उनकी भूमिका को कहीं भी कमतर कर नहीं आका जा सकता। बावजूद इसके, सीमांत गांव भी पलायन का दंश झेल रहे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इस राज्य के लिए किसी भी दशा में उपयुक्त नहीं कहा जा सकता।
इस बीच प्रधानमंत्री ने सीमांत क्षेत्रों तक भाजपा संगठन को मजबूत बनाने पर जोर दिया है तो इसके मायने भी यही हैं कि इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाए। इसके राजनीतिक मायनों को अलग रख दिया जाए तो सीमांत क्षेत्रों में पर्यटन समेत अन्य गतिविधियों को बढ़ावा देने से जहां सुरक्षा सशक्त होगी, वहीं स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे। जब सीमांत गांवों में लोग रहेंगे तो इससे देश की सीमाएं भी सुरक्षित रहेंगी।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के अनुसार, सीमावर्ती क्षेत्रों के लोग द्वितीय पंक्ति के सैनिक की तरह हैं। प्रधानमंत्री के संदेश के अनुरूप हम सीमांत प्रहरी की भूमिका निभाने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों के नागरिकों के बीच जाएंगे। इस पहल का उत्तराखंड को विशेष रूप से लाभ मिलेगा। सीमांत क्षेत्रों में देश की सामूहिकता भी दिखाई देगी।
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